पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६२८

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काव्य-निर्णय ५६३ अथ चार बरन नियमित कौ उदाहरन- मैहर निमोही नाह है, हरे-हरें मन-माँन । मौन-मरोरै मानिनी, नेह-राह में हाँन । ___अथ पाँच बरन नियमित को उदाहरन- कॅम लागे कॅमला-कला, मिलै मेनका कोंन । नीकी में गल गोंन कै, नींकी में गल गोंन ॥ अथ छै बरन नियमित को उदाहरन- सदानंद संसार-हित, नासन-संसै त्रास । निस्तान संसै सदाँ, दररॉन दरसत 'दास' ।। अथ सात बरन नियमित को उदाहरन- मधु माँस मेरी परा धरा पग धारै माधौ, सीरे-धीरे गोंन सों सुगंध पनि परिगौ। नीरें गै-गै पुनि-पुनि ररै न मधुर धुनि, माँनों मेरी रॅमनो मधुप-सार मरिगौ ।। पागे मँन प्रेम सों न* नेम-रॉम साधे मोन, - सिगरे परौसी पापो धाम सों निसरिगौ। रोस-धरि गिरधारी मँन में फँसे नारी', सुमन-धनु-धारी सर' पने-ने सरिगौ ।। वि०-"दासजी ने उपयुक्त एक, (केवल 'त' व्यंजन ), दो (र, म से) तीन (न, म, ह से), चार (न, म, र, ह से), पांच (क, ग, न, म, ल से), छह (त, द, न, र, स, ह से) और सात (ग, ध, न, प, म, र, स से) व्यंजन-व्यवहृत के उदाहरण प्रस्तुत किये हैं । इस प्रकार के उदाहरण श्राचार्य केशव ने कवि-प्रिया में और महाराज काशीराज ने 'चित्र-चंद्रिका' में अनेक दिये हैं। तस्मथों से दो उदाहरण यथा- "बोल लाल ल ल लली, लोल लली-लों लाल । जोन लला लैला लली, लोल लखीलों लाल ॥" पा०-१. (सं०पु०प्र०) करोरै| २. (३०) सजै"। 'प्र०) संतन"। ३. (का०) (प्र०) में-री। ४. (का) (३०) (प्र०) सारे"। ५. (३०) न माने समें साधे मोंन । (सं०४०प्र०)(प्र०)."सो मुनीसन से,"। ६. (का०) परी-सी"। ७ (स०पु०प्र०) (प्र०) माहि". (का०) (३०) न री,"IE. (प्र०) "धारी, पैने सर सरिगी । (सं० पु० प्र०) '"सर पेनों पेनिसरिगी।