पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६३१

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काव्य-निर्णय तदनुसार प्रत्येक पंखडी के अक्षरों-दँ, अँ, तँ, प्रां, हँ, भौं, माँ, अँ, माँ, ग्याँ, माँ, ज. ठाँ, |, ध्या, श्राँ, हैं और माँ को कोष के 'नु' से मिलाकर पढ़ने से ऊपर लिखा दोहा बन जाता है।" अथ कंकन-बंध चित्रालंकार जथा- साहि' दाँमवंत ठाँनि, वाहि कॉमबंत माँनि । जाहि' नॉमबंत खाँनि, ताहि नाँम सत जाँनि । उदाहरन जथा- संत रबानिस हि नाम समबतठात्रि al Ke अथ डमरू-बंध चित्रालंकार जथा- रौल-समान उरोज बने, मुख-पंकज सुदर मॉन नसै। सैनन मार दई जुग नेन की,तारे कसौटिन तारे कसै ॥ सैकरे ताँन टिके सुनिबे कह, माधुरी' बेन सदाँ सरसै। सैर सदाँ सॅन बेलि के केस, मॅनों घंन साँउन मास लसै। वि०-"उदाहरण रूप नीचे दिये गये चित्र के मध्य कोष्टक में "सै" से १, २, ३, ४ अंकानुसार गतागत रूप से यह चित्रालंकार बनता है। पा०-१. (का०)(३०) साहि दामवंत पानि, नाहि काम-अंत मानि । २. (का०) (प्र०) बाहि नाम-तंत खानि, नाहि...I (३०) जाहि राम-तत खानि,...। ३. (का०)(३०) (प्र०) जुग नेनन...। ४.(का०) (प्र०) माधुरि...। ५. (का०)(प्र०) वैलि की केस...।