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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/९८

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काव्य-निर्णय संसृष्टि अलंकार बरनन 'दोहा' जथा- एक छंद में अँह परें, 'अलंकार' बहु दृष्टि । तिल-तंदुल-से हैं मिले, ताहि कहें 'संसृष्टि' । उदाहरन 'कबित्त' जथा- घन-से सघन स्याँम केस बेस भाँमिनि के, ब्यालँन-सी बैनी, भाल ऐसौ एक भाल-ही । भृकुटी कमान दोऊ दोउँन को उपमान, नेन से कमल, नासा कीर-मद घाल-ही ॥ गरब कपोलँन मुकर सँमता कों सीप-स्रोन- आगें, अोठ भागें बिंब'-पक्व-फल हाल ही। मोतिन को सुखमा बिलोकियत दंतन में, 'दास' हास-बीजुरी को देख्यौ इक चाल ही॥ अस्य तिलक- इहाँ 'केस' पै 'पूरनोपमा', 'बेनी पै 'लुप्तोपमा' (धर्मलुप्तोपमा), 'भाल' पै 'अनन्वह', 'भृकुटी 4 'उपमानोपमेह', 'नेन', 'नासिका' औ 'कपोलॅन' पै तीन्यों 'मतीप', 'स्रोन-मोठ'पै चौथौ 'प्रतीप', के 'दृष्टांत', कै 'तुल्लजोगता', 'दंत' भौ 'हास पै 'निदरसना', (आदि) भिन्न-भिन्न (भलंकार) पाईयतु हैं, ताते 'संसृष्टि' कहिऐ। अन्य 'कबित्त' जथा - ती को मुख इंदु है औ सेदँन सुधा के बुंद, ___मोती-जुत नासा मैंनो लीनों सुक चारौ है। ठोड़ी-रूप कूप है कि गदहा' अनूप है कि अभिराँम मुख-कवि-धाम को पँनारौ है। प्रीबा-छबि-सीवा में ललित लाल माल लखि, भाबत चकोर जॉने अमल अँगारौ है। देखत उरोज सुधि भाबत है साधुन कों, ऐसौई अचल सिब साहिब हमारौ है॥ पा०-१. (सं० प्र०) बिंब-हि कहा लही। २. (भा० जी०) (३०) (प्र०) नांक...। ३. (३०) (प्र०) मानों लीने सुक...। ४. (प्र०) (३०) (भा० जी०) गोई...1 ५. (प्र०) (२०) साधुन के...।