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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/११८

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काव्यदर्पण ___इसमें आंचल में दूध होना बाधित है। अतः सामीप्य सम्बन्ध द्वारा स्तन में दूध होना लक्ष्यार्थ लिया जाता है । मातृत्व का प्राधिक्य प्रकट करना प्रयोजन है । २ आधाराधेयभाव सम्बन्ध से- कौशल्या के वचन सुनि भरत सहित रनिवास । व्याकुल विलपत राजगृह मानहु शोकनिवास ।।-तुलसी रनिवास का रोना सम्भव नहीं। अतः यहाँ श्राधाराधेय भाव सम्बन्ध से रनिवास में रहनेवालों का अर्थ बोध होता है । विषाद को व्यापकता प्रकट करना प्रयोजन है। ३ तात्कर्म्य सम्बन्ध से- ए रे मतिमन्द चन्द आवत न तोहि लाज होके द्विजराज काज करत कसाई के।-पद्माकर यहां चन्द्रमा का कसाई का काम करना बाधित है। क्योंकि, वह तो किसी का गला नहीं काटता। लक्षणा से विरहिनियों को सताने के कारण घातक का अर्थ लिया जाता है। यहां तात्कयं अर्थात् समान कर्म करने का सम्बन्ध है । भाव यह कि वह कार्य-विशेष करना, जो दूसरा कोई करता है। संताप देने की अधिकता बताना प्रयोजन है। उपादानलक्षणा जहाँ वाक्यार्थ की संगति के लिए अन्य अर्थ के लक्षित किये जाने पर भी अपना अर्थ न छूटे वहाँ उपादानलक्षणा होती है। उपादान का अर्थ है ग्रहण-लेना । इसमें वाच्यार्थ का सर्वथा परित्याग नहीं होत्त। अतः इसे अजहत्स्वार्थी भी कहते है । अर्थात् जिसमें अपना स्वार्थ न छूट गया हो । जैसे, 'पगड़ी को लाज रखिये' । यहाँ पगड़ी को लाज रखना अर्थ बाधित है। लक्ष्याथ होता है पगड़ोघारी को लाज । यहाँ पगड़ो अपना अर्थ न छोड़ते हुए पगड़ीधारी का आक्षेप करता है । यहाँ दोनों साथ-साथ हैं। अतः उपादान- लक्षण है। मैं हूँ बहन किन्तु भाई नहीं है । राखी सजी पर कलाई नहीं है। -सुभद्राकुमारी कलाई अलग रहने की वस्तु नहीं है। अतः कलाई 'भाई की कलाई का उपादान करता है। यहाँ अंगांगिभाव सम्बन्ध है। दूसरे ढंग का एक उदाहरण देखें । जैसे, कोई विवाहायों बादि यह कहना है कि 'घर अच्छा है' तो इसका अर्थ यह नहीं होनाकर साफ-सुअस बना हुआ है, बल्कि यह होता है कि घर भी अच्छा है,