पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४१७

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३३५ रोति को रूप-रेखा ___ मम्मट ने इस रीति को वृत्ति संज्ञा दी है। रौतिया वृत्ति का आधुनिक नाम शैली है। किसी वर्णनीय विषय के स्वरूप को खड़ा करने के लिए उपयुक्त शब्दों का चुनाव और उनकी योजना को शैली कहते हैं, जिसका वर्णन हो चुका है। देशविशेष के प्रमुख कवियों की प्रचलित प्रणाली के नाम पर ही रीतियों का वैदर्भी, पांचाली, गौड़ी आदि नामकरण हुआ है। पृथक्-पृथक् नादाभिव्यञ्जक वर्षों से, संघटित के चुनाव से जो वस्तु का प्रस्तुतानुगुण भकार की विशेषता आती थी उसोसे उन वृत्तियों के उपनागरिका, कोमला और पुरुषा ये नाम पड़े। वृत्ति के सम्बन्ध में ध्वन्यालोककार का कहना है कि शब्द और अर्थ का रसादि के अनुकूल जो काव्य में उचित व्यवहार-समावेश-योजना है वही वृत्तियां हैं, जिनके दो भेद हैं-शब्दाश्रित और अर्थाश्रित । उपनागरिका आदि शब्द-संबंधिनी वृत्तियाँ हैं। वामन ने जो विशिष्ट पद-रचना को रौति और पद-रचना में विशेषता लानेवाले धर्म को गुण कहा, उससे स्पष्ट है कि काव्य में रस और गुण का संयोग अनिवार्य है। काव्य के प्रधानतः पाँच उपकरण हैं-रौति, गुण, अलंकार, रस और ध्वनि । प्रारंभ के तीन शब्द के और अंत के दो अर्थ के उपकरण हैं। एक समय के कवियों ने अर्थ की उपेक्षा करके शब्द के उपकरणों पर ही ध्यान दिया, जिसमें रोति की प्रधानता यौ। इससे उस काल के कवि रीति-कवि और काव्य रीति-काव्य कहे जाने लगे। दूसरी छाया रीति के भेद वैदर्भी माधुय-व्यंजक वर्गों को जो ललित रचना है उसे वैदर्भी रीति या उपनागरिका वृत्ति कहते हैं। १ आयी मोदपूरिता सोहागवती रजनी चांदनी का आंचल सम्हालती सकुचती गोद में खेलाती चन्द्र चन्द्र-मुख चूमती, झिल्ली रष गूजा चली मानों वनदेवियाँ लेने को बलया निशा रानी के सलोने की-वियोगी ' ऐसी रचनाएँ माधुर्य-गुण-व्यञ्जक होती है। १ रसायनुगुणत्वेन व्यवहारोऽर्थशब्दयोः। मौचित्यावान्यस्ता एता. वृत्तवो द्विविधा स्मृताः। ध्वन्यालोक