पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५५

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रुपस्थापन भी एक प्रकार की अभिव्यक्ति हो है। विषयरूप से जिसकी अभिव्यक्तिः नहीं होती उसकी उपलब्धि या अन्तरुपस्थिति भी नहीं होती।"" कहते है कि "एक शब्द का यदि सम्यक् ज्ञान हो जाय और सुन्दर रूप से उसका प्रयोग किया जाय तो वह शब्द लोक और परलोक, दोनों मे अभिमत फल का दाता होता है ।।२ कुन्तक के कथनानुसार सुष्ठु प्रयोग वही है जो "अन्य अनेक वाचको के रहते हुए भी विवक्षित अर्थात् अभिलषित अर्थ का एकमात्र वाचक होता है, वही शब्द है।"3 इसी बात को वाल्टर पेटर भी कहता है कि "काम चलाने के लिए अनेक शब्दों के होते हुए भी एक वस्त, एक विचार के लिए एक ही शब्द उपयुक्त है। इसके विषय में दण्डी कहते है-"सम्यक् प्रयोग होने से कामधेनु के समान शब्द हमारा सर्वार्थ सिद्ध करता है और दुष्प्रयुक्त होने से प्रयोक्ता की ही मूर्खता को प्रमाणित करता है।" पाश्चात्यों ने शब्दों का एक संगीत-धर्म भी माना है । शब्दों की संगीता- स्मकता दो कारणों से आती है। एक तो है धन्यात्मकता, जो रसानुकूल वर्गों की रचना तथा अनुप्रास, यमक-जैसे शब्दालंकारों से आती है और दूसरा है छन्दो- विधान । इस विधान के रस-भावानुकूल होने से शब्दों को गेयता बढ़ जाती है। कर्ण-सुखदायकता ही संगीत है । कुन्तक कहते हैं कि "अर्थ का विचार यदि न भी किया जाय तो भी प्रबन्ध-सौन्दर्य की सम्पत्ति से सहृदयों के हृदयों में श्राह्लाद उत्पन्न होता है। एक विदेशी कवि का भी यही कहना है कि "मैं दो बार कविता सुनना चाहता हूँ, एक बार संगीत के लिए और दूसरी बार अर्थ के १. Every true intution or representation is, also, expre ssion. That which does not objectify itself in expression is. not intuition or representation-Aesthetics २. एकः शब्दः सम्यक् शातः सुष्ठु प्रयुक्तः स्वर्ग लोके च कामधुग्भवति । -महानाय । ३. शब्दा विवक्षितार्थेकवाचकोऽन्येषु सरस्वपि ।-वक्रोक्तिजीवित | ४. The one word for the one thing, the one thought, amid: he multitude of words,terms mightjust do...Appreciation, Style.. ५. गौ!ः कामदुधा सम्या प्रवक्ता स्मयते बुधैः दुष्प्रयुक्ता पुनर्गोत्वं प्रयोक्तुः सेयश सति ।-काव्याइर्श