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काव्य में रहस्यवाद


मैदान के अकेले ऊँचे पेड़ को धूप में चलते प्राणियों को विश्राम के लिए बुलाता हुआ कहें, पृथ्वी को पालती-पोसती हुई स्नेहमयी माता पुकारें, नदी को बहती धारा को जीवन का संचार सूचित करें, गिरि-शिखर से स्पृष्ट झुकी हुई मेघमाला के दृश्य में पृथ्वी और आकाश का उमंग-भरा, शीतल, सरस और छायावृत आलिंगन देखें, तो प्रकृति की अभिव्यक्ति की सीमा के भीतर ही रहेंगे।

इसी प्रकार अभिव्यक्ति की प्रकृत प्रतीति के भीतर, प्रकृति की सच्ची व्यंजना के आधार पर, जो भाव, तथ्य या उपदेश निकाले जायँगे वे भी सच्चे काव्य होंगे। उदाहरण के लिए अगरेज़ कवि वर्ड्सवर्थ की "एक शिक्षा" (A Lesson) नाम की कविता लीजिए। इसमें एक फूल का वर्णन है जो बहुत ढंड, मेह या ओले पड़ने पर संकुचित होकर अपने दल समेट लेता है। कवि ने एक बार इस फूल को इस युक्ति से अपनी रक्षा करते देखा था। फिर कुछ दिनों पीछे देखा तब वह जीर्ण हो गया था, उसमें दल समेटने की शक्ति नहीं रह गई थी। वह मेह और ओले सह रहा था। उसका वर्णन कवि ने इस प्रकार किया―

I stopped and said with inly muttered voice. It doth not love the shower, nor seek the cold, This neither is its courage nor its choice, But its necessity in being old.

"मैं रुक गया और मन-ही-मन कहने लगा -- यह न तो इस