३४ काव्य में रहस्यवाद है। सभ्यता की वर्तमान अवस्था में, जब कि मनुष्य का ज्ञान विचारात्मक होकर बहुत विस्तृत हो गया है, ऐसा होना बहुत चचित और स्वाभाविक है। यहाँ पर यह दिखाने के लिए कि सूक्ष्म विचार और व्यापक दृष्टिवाले जीवित योरपीय कवियों की कविता भी कभी-कभी वादग्रस्त होकर किस प्रकार अपना स्वरूप बहुत कुछ खो देती है, हम अँगरेजी के आजकल के एक अच्छे कवि अवरक्रोवे (Lascelles Abercrombie ) का लेते हैं नो संकुचित दृष्टि के सिद्धान्ती रहत्यवादी न होने पर भी अध्यात्म की ओर मुनकर कमी-कमी रहत्योन्मुख हो जाते हैं। अवरक्रोवे में योरप के वर्तमान कवियों की थोड़ी-बहुत सब प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं। कभी वे मिलों, कल कारखानों यादि में काम करनेवाले मजदूरों की दुरवस्था पर, उनके साथ होनेवाले अन्याय और अत्याचार पर, करुणा और रोष प्रकट करते हैं; कमी जगन् जीवन आदि के सम्बन्ध में तत्तचिन्तन करते हैं: कमी शरीर, यात्मा, असीम-ससीम की जिन्नासा की प्रेरणा से रहत्य-भावना में प्रवृत्त होते हैं। इसी जिन्नासा के क्षेत्र में उन्होंने कहीं-कहीं परोक्ष-सम्बन्धी किसी वाद का प्रत्यक्षीकरण या 'अज्ञात के अभिलाय' का काव्यात्मक प्रतिपादन किया है। "मूर्ख का gran DIET" (The Fool's Adventure ) ; उन्होंने "तत्वमसि" के निरूपण के लिए जीवात्मा और ब्रह्म का एक खासा संवाद कराया है। एक जिन्नामु ईश्वर (ब्रह्म) की खोज में मन और आत्मा का सारा प्रदेश छान डालता है और