पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/४१

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३६ काव्य मे रहस्यवाद अन्तर्वाणी-हॉ, बहुत लोग ऐसा ही कहते हैं। फिर भी, यद्यपि शब्दों के भीतर मेरा स्वरूप नहीं आ सकता, मेरा इससे अच्छा नाम भी है। जिज्ञासु-फिर तू है कौन ? अन्तर्वाणी-मैं तू ही हूँ (तेरी आत्मा हूँ)। इसी प्रकार "तुरीयावस्था" (The Trance ) नाम की कविता मे उन्होने ब्रह्मानुभूति का वर्णन इस प्रकार किया है- "मैं निश्चय (जिसका सम्बन्ध बुद्धि या विचार से होता है) के ऊपर उठ गया था, काल से परे हो गया था। दिक् के ज्योतिष्क मंडलों से तथा उस कोने से जिसे चेतना या ज्ञान कहते हैं, बिल्कुल बाहर हो गया था । उस दशा में, हे प्रभो। मैं तुम्हारे बीच में नहीं था।" यहाँ पर हम यह स्पष्ट कह देना चाहते हैं कि उक्त ज्ञानातीत (Transcendental ) दशा से चाहे वह कोई दशा हो या न हो-काव्य का कोई सम्बन्ध नहीं है । स्वयं अवरक्रोवे ने ही अपनी एक दूसरी कविता "शरीर और आत्मा" (Soul and क्या

  • I was exalted above sprety

And out of time did fall. X X x X I stood outside the burning rims of place, Outside that corner, consciousness, Then was I not in the midst of thee Lord God i