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काव्य में रहस्यवाद

"तूने मुझे असीम बनाया है" ऐसी कविताओं में यह बात नहीं है। इस ढंग की कविताओं के स्वरूप का कुछ उद्धाटन स्वर्गीय द्विजेन्द्रलाल राय ने अपनी समीक्षाओं में किया था।

भारतीय काव्यदृष्टि के निरूपण में हम दिखा चुके हैं कि भारतवर्ष में कविता इस गोचर अभिव्यक्ति को लेकर ही बराबर चलती रही है और यही अभिव्यक्ति उसकी प्रकृत भूमि है। मनुष्य के ज्ञानक्षेत्र के भीतर ही उसका संचार होता है। "चेतना के कोने के बाहर" न वह झाँकने जाती है, न जा ही सकती है। वहीं पर हम यह भी कह चुके हैं कि अभिव्यक्ति के क्षेत्र में स्थिर ओर निर्विशेष (Static and Absolute) सौन्दर्य्य या मंगल कहीं नहीं है। वह केवल किसी वाद के भीतर ही मिल सकता है। अभि- व्यक्ति के क्षेत्र में गत्यात्मक सौन्दर्य्य और गत्यात्मक मंगल ही है। सौन्दय्य-मंगल की यह गति नित्य है। गति की यही नित्यता जगन् की नित्यता है। रवीन्द्र बाबू के दोस्त ईट्स (W. B. Yeats) एक ओर कट्टर देशभक्त और आयलैंड की अनन्य आराधना प्रवर्तित करनेवाले हैं; दूसरी ओर ब्लेक Blake) के साम्प्रदायिक और सिद्धान्ती रहस्यवाद का पूरा समर्थन करनेवाले। वे भी जब कभी वादमुक्त होकर काव्य की शुद्ध सामान्य भूमि पर आते हैं तब भारतीय दृष्टि के अनुसार सापेक्ष गत्यात्मक (Drnamic) सौन्दर्य्य की नित्यता और अनन्तता का अनुभव करते हैं। अपनी 'गुलाब' शीर्षक कविताओं में एक स्थल पर वे साफ कहते हैं --