पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/६३

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काव्य में रहस्यवाद लोग रस-पद्धति को अच्छी तरह समन्ते हैं और आधुनिक मनोविज्ञान द्वारा निलपित भाव (Emotion. Sentiment , के त्वत्प में भी परिचित हैं. उनके निट इस कथन का कोई अर्थ नहीं है। 'भा कोई एक नानसिक वृचि नहीं है वह एक वृदि-चक्र (System ) है। जिसके अन्तर्गत प्रत्यय (Cox- nition ). zgola (Feeling), (Conation ), गति या प्रवृत्ति ( Tendency ). शरीरधर्म (Symptoms , सवका योग रहता है। हमारे यहाँ रस निष्पन्न करनेवाली पूर्ण भाव- पद्धति में ये सब अवयव रखे हुए हैं। विभावों और अनुभावों की प्रतिष्टा ऋषि की कल्पना द्वारा ही होती है और श्रोता या पाठक मी उनकी मूर्ति या रूप का ग्रहण अच्छी कल्पना के बिना पूरा-पूरा नहीं कर सकता। विभाव और अनुमात्र कल्पना. साध्य हैं। किसी भाव की रसात्मक प्रतीति उत्पन्न करने के लिए ऋषि- कर्म के बोपन्न होते हैं-अनुमाव-पक्ष और विमाव-पक्ष । अनुमाव-पज्ञ में श्राश्य के हम, चेष्टा और वचन का और विभाग-पक्ष में बालंबन के रूप, चेटा और वचन का विन्यास होता है। इस दृष्टि ने गंगाररस में नियों के जो हार या अलंकार माने गए हैं। विमाव पक्ष के अन्तर्गत होंगे, अनुभाव-पक्ष के नहीं। नायिकाओं में हार या अलंकार की योजना उनकी मनो- मोहकता बढ़ाने के लिए उन्हें और मनोहर-रूप प्रदान करने के लिए होती है, भाव की व्यंजना के उद्देश्य से नहीं। नायिना