अमिका। रामायण में भगवान् बाल्मीकिजी ने कहा है जो बस्तु हुई हैं नाश होगी, जो खड़ी है गिरेंगी, जो मिले हैं बिछुड़ेंगे, और जो जीते हैं अवश्य सरेंगे। सच है, इस जगत को गति पहिये की धार को भांति है। जो भार अभी जपर थी नीचे गई और जो नीचे थी जपर हो गई। प्राधीरात को सूर्य का वह प्रचंड तेज कहां है जो दो पहर को था। दिन को ठंढी किरनों से जी हरा करने वाला चन्द्रमा कहां है। संसार की यह। गति है। जो भारतवर्ष किसी समय में सारी पृथ्वी वाा सुकुटमणि शा, जिस की मान सारा संसार मानता था और जी विद्या वीरता और लक्ष्मो का एक मात्र विश्वास था वह आज हीन दीन हो रहा है-यह भी काल का एक चरित्र है। जब से यहां का खाधीनता सूर्य अस्त हुआ उस के पूर्व समय का उत्तम गृङ्खलावद्ध कोई इतिहास नहीं है। मुसल्यान लेखकों ने जो इतिहास लिखे भी हैं उन में प्रार्यकीर्ति का तोप कर दिया है। प्राशा है कि कोई साई का लाल ऐसा भी होगा जो बहुत सा परिश्रम स्वीकार कर के एक बेर अपने 'बाप दादों' का पूरा इतिहास लिख कर उन की कीर्ति चिरस्थायी करैगा। इस ग्रन्थ में तो केवल उन्हीं लोगों का चरिच है जिन्हों ने हम लोगों को गुन्नास बनाना प्रारंभ किया। इस में उन मस्त हाथियों के छोटे छोटे चित्र हैं जिन्हों ने भारत के लहलहाते हुए कखलबन को उजाड़ कर पैर से कुचल कर छिन्न भिन्न कर दिया। सुहम्मद, महसूद, अलाउद्दीन, अकबर और औरं- मज़ब अादि इन में सुख्य हैं। प्यारे भोले भाले हिन्दू पाइयो ! अकबर का नाम सुन कर आप लोग चौंकिए मत यह ऐसा बुद्धिमान शत्रु था कि उस की बुद्धि बल से. प्राज तक आप लोग उस को मित्र समझते हैं। किंतु ऐसा है नहीं। उस की नीति (policy ) अङ्गरेज़ों को भांति गूढ़ थी। मूर्ख औरङ्गज़ ब उस को समझा नहीं, नहीं तो आज दिन आधा हिन्दुस्तान सुसल्मान होता। हिन्दू सुस- ल्यान में खाना पीना व्याह शादी कभी चल गई होती। अगरेज़ों को भी जो बात नहीं मझी वह इस को सूझी थी। ____ यद्यपि उस उरद शैर के अनुसार 'बाग़बां आया गुलिस्तां में कि सैयाद पाया। जो कोई आया मेरी जान को जलाद भाया ।' क्या सुसल्मान क्या अङ्गारेज़ भारतवर्ष को सभी ने जीता किन्तु इन में उन में तब भी बड़ा प्रमेंद
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