चन्द्रगुप्त का समय पुराण० ३३७८, जोन्स २४७७, विल फर्ड २२२७, वि- ल्मन २१०२, टाड २१८७, ब्रह्मावाले २२६८ । अशोक का समय पुराग० ३३४७, जोन्स २५१७, विलसन २१२९, ब- मावाले २२०७। जोन्स प्रिन्सिप साहब के मत से परशुराम जी को ३०५३ हुए, और वे- एटली साहब के सत से बाल सीकी रामायण बने केवल १५८६ बर्ष हुए। कलियुग का प्रारम्भ पुलोम के समय तक भागवत के मत से ३७३४, ब्रह्माण्ड पुराण के सत से ३६५२, वायु पुराण के मत से ३६०६, जैनों के सत से २८५५, और चीन और ब्रह्मा के मत से २५६८, वर्ष से है, अंगरेजी विहा- नों की पुराणों के अनुसार इस समय तक पुलोम का समय जोड़ कर एक संमति है कि कलियुग बीते ५.००० वर्ष लगभग हुए परन्तु इस मत को वे सत्य नहीं मानते क्योंकि फिर आपही लिखते हैं कि वायम्भु मनु को हुए ५८८३ वर्ष और वैवखतमनु को ४८२७ वर्ष हुए । युधिष्ठिर वो ३०४४ संवत बीते विनाम का संवत चला और विक्रम १३५ वर्ष पीछे शान्ति वाहन का शका चला। ऊपर जो काल निर्णय में विहानों के परस्पर विरुद्ध सत वर्णन किए ग इससे यह बात प्रसिद्ध होगी कि प्राचीन समय निर्णय करना कितना दुरू . है, इसके आगे जो ब्रह्मा से लेकर सुमित्र पर्यन्त नामावाली दी जाती है उ के मध्यगत काल का निर्णय न करके सुमित्र के समय से जो हमारे सत अनुसार २००० वर्ष बीते हश्रा है काल का निर्णय प्रारम्भ करेंगे। ब्रह्मा, मरीचि, कश्यप, विवखान, थानदेव इक्ष्वाकु, बिकक्ष १ पुरंजय, काकुस्थ, २ अनेनास, ३ पृथु, ४ विश्वगश्व, ५ अर्द भाद्रपार्द, युवनाश्व, ६ श्रवस्थ, हहदश्ख, ७ कुवलयाश्व, दृढ़ाव, हर्य निकुन्थ, ८ संकटाख, ८ प्रसेनजित, युवनाश्व, १० मान्धाता, पुरुकुत्स विशदश्व, अनारण्य, पृषदश्व, हर्यश्व, ११ बसुमान, १२ विधवा, १ १ नामान्तर काकुस्थ। २-३ ना० अन पृथु , ४ ना० विश्वगन्धि । ५ ना चन्द्र । ६ ना० खसंव या प्रव । ७ ना० धुन्धुमार । ८ सङ्कटाव के पीछे वकणा और हाशाश्व दो नाम और मिलते हैं। ८ ना० सेनजित। १० ना० सुब पुनको चक्रवर्ती लिखा है ॥ ११ ना० सईण या अरुण । १२ ना त्रिविन्धन १
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