पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१४९

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[ १२ 1 यह अहाड़पुर अब राना लोगों का समाधि स्थल है । वाहते हैं कि अहाड़ पुर में जो गङ्गोन्द्रव तीर्थ है वह इसी राजा का निर्माण किया है और इन्ही की भक्ति से उस में गङ्गा जी का आविर्भाव हुआ था । उस प्रान्त लें इस तीर्थ का बड़ा महाला है। यह तीर्थ उदयपुर से एक कोस पूर्व को पोर है। पाशादिता के पुत्र कालभोजादिता और उनके पुत्र चहादिता ( वा हितो- य नागादिता) घासागांव इन्ही के नाम से प्रसिद्ध है। गहा राजा से लेकर- नागादिता पर्यन्त छ ( टाड साहब के मत से सात ) राजाओं ने इसी पर्वत भूमि का राज्य किया पर इनमें से कोई अतान्त प्रसिद्ध न था किन्तु नागा- दिता के पुत्र बाप्पा बड़ा प्रसिद्ध और नासी मनुष्य हुमा वरच उदयपुर के राज का इसे सुलस्तम्भ कहैं तो अयोगा न होगा । पापा का वर्णन उदयपुर से नो लिख कर पाया है उसे हम यहां पर अविकान्न प्रकाश करते है "ग्रहादिता के बाष्प नामक पुत्र हुआ कहते कि बाष्य नंदी गण के अ- वतार थे यह कथा सविस्तर वायू पुराणांतर्गत एकलिङ्ग माहात्मा में लिखी है जब राना ब्रहादिता के एक शत्रु जंजावल नास दाजा ने घासा नग्र की पान शावर्तन किया वहां राजा ग्रहादिता बड़े पराक्रम को साथ मारे गए अरु घासा में जुजावल का अधिकार हो गया तब भापत्ति काल अवलोकन कर पमरवंशोद्भवाग्रहादिता की राजी ने अपने पुत्र वाष्प को शिशुता के भय से निज पुरोहित बसिष्ट के ग्रह में गोपन कर पिहित रहना स्वीकार किया बहुत समय व्यतीत होने पीछे बाष्प ने बसिष्ट की गी चारन का नि- यस लिया लिखा है कि उस गो निकर में एका कामधेनु नाम धेनु थी सो जब बाष्य गो चारन को जाते वहां उता गाय एक बेणु चय में प्रवेश करती वहां एक स्फटिक का स्वयंभू लिंग था उस पर अपने स्तनों से दुग्ध वती इस वास्त गुरु पत्नी ने एक दिन बाष्प को उपालंभ दिया कि इस धेन के स्तनों में दुग्ध नहीं सो कहां जाता है द्वितीय दिवस बाष्प ने उस गाय को दृष्टि से पिहित न होने दिया वह सुरभी तो शिव लिंग पर पूर्वोक्त दुग्ध श्रवने लगी अरु बाष्प ने इस चरित्र को देख साक्षी बनाने की हारीत नामा ऋषि ज्यों भृङ्गी गण का अवतार लिखा है वहां तपल्या करते हुये को देख बाप्य ने निमंत्रण कर वह चरित्र दिखाया तब सृङ्गी गण ने कहा कि हे बाष्य इस श्रीमदेकलिंगेश्वर के दर्शनार्थ तो मैं यहां ऐसा कठिन तप करता था अक तू भी इन्ही का सेवक नंदीगण का अंशावतार है तब बाष्य को