पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१६०

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[ २३ ] वगाली से टाड साहब ने चितौर के मान राजा का वाजत्व, बल्लभीपुर का वि- वाह, और कुलाचार्य गण लिखित बाप्या के जनम समय का परस्पर समन्वय साधन किया है वह विलक्षण वुद्धि व्यञ्जक है परंतु जटिल और नीरस है इस कारण सविस्तर से इस स्थान में प्रकाटित नहीं किया । उसकी मीमांसा का राल तात्पर्य यह कि बसमीपुर विनाश के १८० बरस पश्चात् विक्रमादित्य के ७६८ संवत् में बाप्पा ने जन्म ग्रहण किया था। कुलाचार्य गण ने नम बशतः एस १८० संख्या को विक्रमादिता का संवत् करको लिखा है । तत् पश्चात् पञ्चदश वर्ष की अवस्था में बाप्पा चितोर राज्य में अभिपिता हुए थे। सुतरां ७८४ संवत् उनका चितीर प्राप्तकाम्न निरूपित हुआ। उस समय से साई एवादश वत्सरावधि बाप्पा के बंधीय ६० राजा गण ने क्रसान्वय से चितौर के सिंहासन पर उपदेशन किया है। यद्यपि अष्ट गण यो ग्रन्यानुयायो बाप्पा के जन्म काल को प्रचीनत्व रचा नहीं हुई परन्तु जो समय टाड साहब ने निरूपित किया है वह भी नितान्त प्राधुनिक नहीं है तदनुसार प्रकाश होता है कि बाप्पा फरासी राजा के क. रोली भिजिया वंशीय राजगण के और सुसलमान सम्राज्य के वलीद खलीफा के समकाल वर्ती थे। आइतपुर * नगर से मिवाड़ वंशीय और एक खोदित लिपि संग्टहीत हुई थी। वह लिपि १०२४ संबत समय की है तत्कालीन चितोर के सिं- हासन में बाप्पा के बंशीय शक्ति कुसार राजा प्रतिष्ठित थे। उस लिपि में शक्ति कुमार के चतुर्दश पुरुष को मध्य एक जन शील नाम से अभिहित हुए हैं। राजभवन की बंशावली अपेक्षा तलिपि में यही एक मात्र अतिरिक्त नाम लक्षित होता है, तद्भिन्न और सब विषय में समता है। इङ्गलैंड के प्र- सिद्ध कवि राम ने कहा है "यद्यपि कविगण सूक्ष्म सता के तादृश्य अनुरागी नहीं, और यदिच वह इतिवृत्त का रूपान्तर कर देते हैं, तो भी उन लोगों को अत्युक्ति के मूल में सत्य को सत्वालक्षित होती है ” हम वर्णित विषय में ह्य म को एतदुत्तिा का सारत्व प्रतीयमान होता है। जन समागम शून्य खापद पूर्ण श्राइतपुर के कानन में जो सब नाम विलुप्त हो जाते और उन ___* आइतपुर-सर्यप । श्रादिता शब्द का अपभ्रंश आएत । अाइत शब्द का संकीर्ण रूप एत, यथा एतवार आदितावार।