पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१८२

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नपादनक्ष शिखरिख समेण राजाधिराज श्रीसदशोकचन्द्रदे- वकनिष्ठमाटश्रीदशरथनामधेयकुमारमादपरोपजीवि भारादा- गारिक सत्यव्रतपरायणाविनिवर्तनीयबीधिसत्वचरितस्कन्धि- वजुलीय श्रीसहमपातू नामधेयस्य महाट का श्री चाट ब्रह्म- सुतस्य महामहालक श्रीऋ षिव्रह्मपौत्रस्य यत्रपुरावं तद भट्टाचार्योपाऽध्याय सातापि-शर्वाङ्ग सङ्गता सकल पुण्यरा- शिरनन्तविज्ञानमालावाप्तव इति श्रीमलक्षण नदेवपादाना. मतीतराज्ये सं० ७६ वैशाख वदि १२ गुरौ। बोध गया के बड़े मंदिर को वारदरी के सामने एक छोटे मं-िर में एक संगमरमरके तख्ते पर तीन लिपि खोदी हुई है। यह तख्ता कुछ नीले रंग का चार फिट लंबा और दो फिट तीन इंच चौड़ा है। इस के आगे की ओर दो लिपि है, पहली शपन्नश पाली भाषा में और दूसरी ब्रह्मा देश की भाषा मे है । और तख्ते की पिछली ओर ३• पंक्ति ब्रह्मा देश की भाषा में है परंतु या संस्कृत नहीं है। उन में से केवल पाली लिपी को यहां नागरो अक्षर में प्रकाश किया - १। नमस्तस्मै भगवते अरहते सम्यक् सम्बुद्धाय ॥ ज तु ॥ बोधिमूले जिनाः सर्वे सर्वजुती तथा अयं । जयतं धर्मगतापि बोधिप्रसादनेन सा। पथ्यावर्तश्लोक । भयं महाधर्मराजा अनेकशेनिभप्रतिच्छद्दन्तगजराजखामि बनेकशतानं आदित्यकुलसम्मतानं । पीतुपीतामहअ- य्यक पाय्यकादिमहाधर्मराजनं सम्यदि २। ष्टिकानं धर्मिकानं प्रवरराजवंशानुक्रमेण असमित- क्षेत्रियवंशजो । सन्ध्याशी लायनेकगुनाधिबासी । दान- रागण सन्तोषमानसो । धम्मिको धम्मगुरुधम्मकेतु धर्मध्वजो । बुबादिरतनत्रये सततं समितं निमपोष