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कुंड वंगाको मगरानो श्रीभवानी ने बनाया इन महारानी की कीर्ति ऐसोही सम स्थानों में उज्ज्दन और प्रसिद्ध है और राजा चन्द्रनाथ राय( उन के प्रपौत्र ) मानो उस पुन्य के फल हैं। भीमचंडी के मार्ग में भी ऐसे ही अनेक चिन्ह हैं और भद्राक्षी नामक ग्राम में एक बड़ा पुराना कोट उन्नटा हुआ पड़ा है और पंचक्रोशी करनेवाले उस के नीचे उसी के ईंटों से छोटे छोटे घर बनाते है और इस में पुन्य समझते हैं सम्भावना है कि यहां कोई छोटी राजसो रही हो क्योंकि काशी के चारो और ऐसी छोटी छोटी कई राजसियां थीं जैसा भासापुर । काशी खंड में आशापूर को एक बड़ा नगर करके लिखा है पर अब तो गांव मात्र वच गया है। भीमचंडी का कुंड भी श्रीमतीरानो भवानी का बनाया है और उस में यह श्लोक लिखा हुआ है।
शाके कालाद्रिभूपे गतविलकमलं गौड़राजेन्द्रपत्नी
गन्धर्वाम्भोधिमन्भोनिधिसमखननं स्वर्गसोपानजुष्टं ।
चक्रे राजी भवानी सुक्नतिमतिकतिर्मीमचंडीसकाशे
काश्यामस्यास्म कीर्तिस्सर पतिसमितौगीयतेनारदाद्यैः ।
अर्थात् शाके १६७६ में रानी भवानी ने यह सरोवर बनाया तो इस लेख से ११८ का प्राचीन यह सरोवर है। इस से प्राचीन भी कुछ चिन्ह हैं पर अत्यन्त प्राचीन नहीं, देहली विनायक नो मुख्य काशी की सीमा हैं वही ठीक नहीं हैं क्योंकि वहां कोई भी प्राचीन चिन्ह शेष नहीं है वहां के मन्दिर और सरोवर सब एक नागर के बनाये हुए हैं जिसे अभी केवल सत्तर प्रस्मी बरस हुए पर इतने ही समय में वह बहुत टूट गए हैं काशी के क-तिपय पंडित कहते हैं कि प्राचीन देहली विनायक वहां से कोसों दर हैं अतएव पंचक्रोशो का प्रचलित मार्ग ही अशुद्ध है और यह सम्भावना भी है क्योंकि सिन्धुसागर तीर्य का बहुत सा भाग इस मार्ग में वास भाग पडता है पर प्राचीन मार्ग की सड़क खेतवाजों ने सम्पूर्ण नष्ट कर डाली।गमेखर में श्रीरानो भवानो को धर्मशाला और उद्यान है परन्तु रामेखर के कोस भर उधर वीच मार्ग ही में एक बड़ा पाचीन मन्दिर खंड पड़ा है। बीच में शिवपुर एक विश्राम है और वहां पांचोपांडव हैं परन्तु यह विश्राम इत्यादि कोई काशीखंड लिखित नहीं है सवं साहो गोपाल दास के भाई भवानी दास साहो के वनाए हुए हैं और अब वह एक ऐमा विश्राम हो गया है कि सब काशी के बन्धु बनों पंचक्रोशी वालों से मिल जाते हैं । कपिन्त-