[ २६ ] कुमारी अन्तरीप से चीन देश तक और ब्रह्मा के देश से ईरान तक जहां देखो वीचमत को मनुष्य देख पडते घे फ़ाहियान और वातसांग जो चीन श सेना के लिये यहां आए थे और जिन के संवत ३८८ और ६४. ईखो निशित किये गए हैं अपने - अन्य में उस समय का भारतवर्ष का वृनान्त लिख हैं कि बौद्धधर्म की बड़ी उन्नति है राजात्रों ने बौद्ध भिक्षुकी को गांव नारा घर विहार बनाने के लिये दे दिये हैं और उन में श्रमण लोग सुख से बास वारते हे मांस ग्नाने का वडा निषेध किया गया है कोई वन याग करने नहीं पाते न टेवो के मामने बलिदान कर सकते हैं और पटने में जिसे पाटलिपुत्र भी कहते हैं शाक्यमुनि बुद्ध का वडा उत्सव होता है और प्रायः बडे २ नगरों में स्त प* और बिहार देख पड़ते हैं।
- " गोरखपुर टपंच" में एक लेख यों लिखा है। :-
मागणपुर के निकट १ पत्थर की लाट है जिस पर पुराने अक्षर खुदे- हुए हैं। उ-पनरों को पिसिप साहिच ने वारस में पढ़ा था। सहिया गांव परगने मलेमपुर मंझरली में है वहां एक पुराना मन्दिर जिस के बीच एक बुद्ध को मुर्ति वर्तमान और कहांव जो सलेमपुर से ६ मील पश्चिम है उस गां7 में एक लाट २४ फुट ऊंची गड़ी है और उस पर ६ फुट लख १६ कोने कलश पर १ बुद्ध की मूर्ति स्थापित है। उस पर जो पु- राने गक्षर अति है उन का उल्था नीचे लिखा जाता है। मूल---यरयोप स्थान भूमिर्नृपति गत गिरः पातवाताब धृता । गुप्तानां वंश यस्य प्रविसृत यशसस्तस्य सर्वोत्तम मर्दुः ॥ राज्ये शक्रेप मस्यक्षितिप शतपते: स्कन्द गुप्तस्य शान्तेः । वर्षे त्रिंशदशैकोर कशततमे ज्येष्ट मासि प्रपन्ने ॥१॥ ख्यातेस्मिन् ग्रामर लेक कुंभः राति जनै स्साधुसंसर्ग पूते । पुत्रोयरसो मिलस्य प्रचुरगण निर्भट्टि सो मो महार्थः ॥ तत्सूनु.रुद्र सोमः प्रथुलमा यशाव्याघ्र रत्यन्य संज्ञो । मद्रस्तरयात्मजो भद्विज गुरुययतिपुप्रायशः प्रीति मान्यः ॥ २ ॥ पुण्यस्कंधस चक्रे जगदिदमखिलं सं सरद्वीक्ष्य भीतो । श्रेयोथं भूत भूत्यै पथिनियमवता मर्ह तामादिकर्तण ॥ पञ्चेद्रांस्थापयित्वा धरणि धरमयान्सन्निखातस्ततो याण् ।