पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२४४

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ध्यास जी ने एक स्थल में पूछा पाचार्य जी ने उस का यथार्थ उत्तर दिया इन्च पर व्यास जी फिर कुछ विवाद करने लगे भाचार्य जी को मोक्ष.पाया और सपने पद्मपाद नामक शिष्य से कहा कि इस खूढ़े मा बाध को बाहर निकाल दो तद विध्य ने यह लोक पढ़ा । शङ्करः शङ्करः साक्षाद्व्यासो नारायणः खयम् । तयोविवादे सम्प्राप्ते किङ्करः किङ्करिष्यति ॥ प्राचार्य जी ने यह सुन कर कहा जो सचमुच यह बूढ़ा ब्राह्मण व्यास होगा तो अवश्य हमारे उत्तर पर संतुष्ट हो के प्रत्यक्ष दर्शन देगा व्यास जी यह सुन कार आप प्रत्यक्ष हुए और प्राचार्य जी से कहा मैं तुमारी परीक्षा लेने के वास्ते पाया था तुम तो शिव के अवतार हो तुम को कौन जीतने वाला है फिर व्यास ने प्राचार्य को बर दिया और ब्रह्मा बुला कर पून की पायु बढ़ा दी तब से आचार्य का प्रताप का द्विगुणित बढ़ गया कुछ समय के अनंतर आचार्य जो रद्दपुर में गए वहां भट्टपाद जिसे कुमारित कहते है और जिस ने मीमांसातन्त्रावार्तिक नामक एक बड़ा भारी धन्य बनाया है तयाब्लि में बैठा था, आचार्य जी ने उस से भेट करके बाद भिक्षा मांगी परन्तु भट्टपाद ने कहा कि मैं अब शरीर दग्ध होने के कारण तुमारे साथ शास्त्रार्थ करने में असमर्थ हूं मेरा बहनोई मंडन मिश्र जो इस्तिनापुर से प्राग्नेय दिशा में विजिल बिंदु नाम नगर में रहता है तुम से यात्रार्थ करेगा और उस से तुमारा गर्व शांत हो जायगा । श्राचार्य जी यह बचन सुन कर वहां गये और लोगों से मंडममित्र के घर का ठिकाना पुछा लोगों ने उत्तर दिया जहां तोते और मैना शास्त्रार्थ करते हैं वही मंडनमिन का घर है शंकराचार्य जी ने सोचा कि जो में दर्वाज से जाता हूं तो मुझे बहुत कास्स लगेगा इस लिये मंत्र को घर से बा- काशमार्ग से उस को घर में उतरे कोई कहते हैं कि उस यो घर के पीछे एका लंबा ताड़ का पेड़ था उस पर चढ़ कर घर में गये उस समय मंडनमिश श्राद्ध करता था इन को देखते ही बहुत क्रुद्ध होगया क्योंकि ये सन्यासी थे और उस ने सन्याय का खंडन किया था और कहा कुतो मुण्डी प्राचार्य जो ने उत्तर दिया पागलामु राडी, मण्ड सुरा, पीता शंका साहिता, मण्ड किं निर्भाग्य शंक यत्यर्चासंइस एव निर्भाग्य इत्यादि दोनों के संपाद हुए