[ ३५ ] ने १०६ में राज पार किया था। तो अब मेन वंश का क्रम यों लिखा जा सत्ता। वीरमेन सामन्तसेन हेमन्तसेन विजयसेन वा सुखलेन वज्ञान्तसेन लक्ष्मण सेन माधवसेन ११२१ केशवसेन ११२२ लछमनिया वमानसेन का समय १०६६ ई० समय प्रकाश के अनुसार है यदि इम को प्रमाग न माने और फारसो लेखकों के अनुसार लछमनियां के पहले नारायण इत्यादि और राजाओं को भी माने तो बल्लालसेन और भी पीछे जा पड़ेंगे। तो अब जयदेव जी लक्ष्मणसेन की सभा में थे कि नई यह वि- चारना चा हर। हमारी बुद्धि से नहीं थे । इस कई दृढ़ प्रमाण हैं। प्रथम तो यह कि उमापतिधर जिसने बिजयसेन को प्रशस्ति वनाई है वह जय- देव जी का सम सामयिक या तो यदि यह मान लें कि जयदेव उमापति गोबर्द्धनादिक सब सौ वरम से विशेष जिए है तब यह हो सकता है कि ये निजयसेन और लक्ष्यण दोनों की सभा में थे। दूसरे चन्द कवि ने जिस का जन्म ११५० सन के पास है अपने रायसा में प्राचीन कवियों की गणना में जयदेव को लिखा है * तो सौ डेढ़ सौ वर्ष पूर्व हुए विना जयदेव जी की भुजगप्रयात-प्रथमं भुजंगी सुधारी ग्रईनं । जिने नाम एका अनेक काईनं ॥ दुती लमभयं देवतं जीवतेसं । जिन विश्खराख्यौ वलीमंत्र सेसं ॥ चवं वेद बंभं हरी कित्ति भाषी । जिनै धम्म साधम्म संमार साषी ॥ ती भारतो व्यासभदरत्यभाष्यौ। जिनैं उत्त पारस्य सारस्थ साप्यौ ॥ चवं सुक्खदेवं परीषत्त पायं । जिनें उदयौ अव कुर्वस रायं ॥ नरं' रूप पंचम्म श्रीहर्ष सारं । नलैराय कट दिने पद हारं ॥ छटं कालिदासं सुभाषा सुबद्ध । जि. बागवानी सुवानी सुवई ॥
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