पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२५८

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। ४३ ] ने अनेक विचित्र इतिहास कहे और उस समय नन्दी को आज्ञा दी थी कि कोई भीतर न पावै परन्तु पुष्पदन्त गण ने योग बल से नन्दी से छिप कर भीतर ना कर वह सब कथा सुनी और अपनी स्त्री जया से कहो और जया ने फिर पार्वती से कही ; यह सुन कर पार्वती ने बड़ा क्रोध किया और पुष्य- दंत और उसके मित्र माल्यवान् को शाप दिया कि दोनों मृत्यु लोक में जन्म तो। फिर जब उन सबों ने पार्वती को दहुत सनाया तव पार्वती ने कहा कि अच्छा विंध्याचल में सुप्रतीक नाम यक्ष काणभूति पिशाच हुआ है उस को देखकर पुष्यदंत जब यह सब कथा कहेगा तब दोष दूर होगा और काण भूति से जब माल्यवान् सुनेगा तच शाप से छुटेगा वही पुप्यदत बररुचि ना- मक कवि कौशाम्बी में हुमा और सुप्रतिष्ठ नगर में माल्यवान् गुणाब्य कनि हुमा यथा । श्रवदच्चचन्द्रमौलि: कौशाम्बीत्यस्तियामहानगरी। तस्यां सपुप्पदंतो वरुचि नामा प्रिये नातः ॥ १ ॥ अन्यश्च माल्यवानपि नगरे सुप्रतिष्टाख्ये। जाती गुगााब्य नामा देविसयो रेषवृत्तान्तः ॥२॥" कौशाम्बी नगरी में सोमदत्त वा अग्निशिल नामा व्राह्मण को स्त्री बसु- दत्ता से बररुचि का जन्म हुआ और पिता छोटे ही पन में मर गया इस से माता ने बड़े कष्ट से इस का पालन किया। यह छोटे ही पन में ऐसा श्रुति धर था कि एक बैर जो सुनता वा जो काला देखता कण्ठ कर लेता और जान जाता । एक समय बेतसपुर के देव स्वामी और सदस्यक नाला ब्राह्मण को पुत्र इन्द्रदत्त और व्याड़ि इस के घर में आए वहां इन दोनों ने बरराचि वो एक शुतिधर सुनके प्राति शांख्य पढ़ा और बररुचि ने उन दोनों को वह ज्यों का त्यों सुना दिया और बररुचि के पिता का मिल सदानंद नानक नट उस रात्रि को कहों अभिनय करता था वंह देख कर वरराधि ने अपने माता के सागने ज्यौं का त्यौं फिर कर दिखाया। उन दोनों ब्राह्मणों को इस की एक श्रुति धरता से बड़ी प्रसन्नता हुई क्योंकि जब इन दोनों ने विद्या के हेतु तप किया था तब इन को बर मिला था कि पाटलिपुत्र में बर्षनामक उपाध्याय से तुम सब विद्या पाओगे। बर्ष उपवर्ष यह दो भाई शंकर साहि व्राह्मण के पुत्र धे उस में उपबर्ष पण्डित और धनी था और वर्ष मर्ख सोर दरिद्री था उपबर्ष की स्त्री से अनादर पा कर वर्ष ने विद्या के हेतु तप किया और स्कन्द से सब