संसार में जो लोग भाषा काव्य समझते होंगे वह सूरदास जी को अवश्य जानते होंगे और उसी तरह जो लोग थोड़े बहुत भी बैष्णव होंगे वह इनका थोडा बहुत जीवन चरित्र भी अवश्य जानते होंगे । चौरासी बार्ता, उसकी टीका, भतामाल और उसकी टीकाओं में इनका जोवन विकृत किया है। इन्ही ग्रन्थों के अनुसार संसार को और हम को भी विश्वास था कि ये सारखत ब्राह्मण हैं इनके पिता का नाम रामदास, इनके माता पिता दरिद्री थे, ये गऊघाट पर रहते थे, इत्यादि । अब सुनिए, एक पुस्तक सूर- दास जी के दृष्टिकूट पर टीका [ टीका भी सन्भव होता है उन्ही को क्यों कि टीका में जहां अलंकारों के लक्षण दिए हैं वह दोहे और चौपाई भी सूर नाम से अंकित हैं ] मिली है । इम पुस्तक में ११६ दृष्टिकट के पद अलंकार और नाइका के क्रम से हैं और उनका स्पष्ट अर्थ और उनके अलंकार इत्यादि सब लिखे हैं। इस पुस्तक के अन्त में एक पद में कवि ने अपना जीवन चरित्र दिया है जो नीचे प्रकाश किया जाता है। अब इस को देख कर सूरदास जी के जीवन चरित्र और बंश को हम दूसरी ही दृष्टि से देखने लगे। वह लिखते हैं कि 'प्रथजगात [१]' प्रार्थज गोत्र । बंश में इन के सूल पुरुष ब्रह्मराव [२] हुए जो बड़े सिद्ध और देवप्रसाद लब्ध थे । इन के बंश में भौचन्द [३] हुआ । पृथ्वीराज [ ४ ने जिस को ज्वाला देश दिया। उस के चार पुत्र जिन में पहिला राजा हुआ। दूसरा गुणचन्द्र । उस का पुत्र सीलचन्द्र उस का वीरचन्द्र । यह बीरचन्द्र रत्नश्चमर [ रणथम्भौर ] के राजा १ प्रथ जगात ' इस जाति वा गोत्र के सारस्वत ब्राह्मण सुनने में नहीं आए। पण्डित राधासष्ण संग्टहीत सारस्वत ब्राह्मणों की जाति माला में 'प्रथ जगात' 'प्रथ' वा 'जगात' नाम ो कोई सारस्वत ब्राह्मण नहीं होते। जगा वा जगातिआ तो भाट को कहते हैं। २ ब्रह्मराव नाम से भी सन्देह होता है कि यह पुरुष या तो राजा रहा हो या भाट। ३ 'भी' का शब्द हुआ अर्थ में लीजिए तो केवल चन्द्र नाम था। चन्द्र नाम का एक कवि पृथ्वीराज की सभा में था ? आचर्य !!! ४ पृथ्वीराज का काल सन ११७६ ।
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