पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२७६

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प्रथम नैपोलियन का अंत का पराभव हुआ था अनंतर इन को और इनको माता को फ्रांस छोड़ कर के अन्य देश में जाना पड़ा इन्होंने स्विटज़र ल्यांड में विद्याभ्यास आदि किया पीछे इन को वहां को सेना में रहने की आज्ञा मिलो कुछ दिवस पर्यन्त धन सरोवर के तट क. तोपखाने में अभ्यास किया तदनन्तर सन् १८३० में फ्रांस देश में राज्य संबंधी हलचल देखकर के फिर अपने खदेश में पाने का उद्योग किया परंतु वह सफर न हुधा उलटी सी- सा को बाहर रहने को आज्ञा हुई एका.वर्ष के अनंतर खिटज़र ल्यांड छोडं . कर के टस्कनी में जाकर रहना पड़ा और रोम के युद्ध में मिल गए इतने में उन को जेष्ठ नाता का देहांत हुआ फिर वहां से निकल कर इंग्लड में जाकर रहे सन् १८३२ से सन् १८३५ पर्यंत काल ग्रंथ लिखने में व्यतीत किया इसी काल में उन के चचेरे भाई , प्रथम नेपोलियन के पुत्र नेपोलियन की सहायता कर के उसे दसरा नैपोलियन कहला कर राज सिंहासन पर बैठावें फ्रांस देश के कई एक मुख्य निवासियों के चित्त में यह बात आई थी और फ्रांस के सीमा तक त्रागसन की इच्छा करते थे तो इतने में उन का भी देहांत.हुआ इस फ्रांस के राज सिंहासन पर बैठने का अधिकार उत्ता नैपोन्तियन को प्राप्त हुआ और वह संपादन करने का. विचार उनके चित में आया सन् १८३६ - पर्यन्त प्रयत्न कर के स्ट्रास्वर्ग पर चढ़ाई किया परंतु यह प्रयत्न सफल न होकर श्रापहो पकड़े गए अंत में पारिस में उन को लेगए उन की माता और दूसरे महाशयों के उद्योग से इनका प्राण बचा और ये युनेटेड स्टेक्स के पास भेजे गए वहां एक दो वर्ष रहकर. स्विटज़र ल्यांड में लौट आए तो वहां उन के माता का देहांत हुआ सन् १८३८ में उनकी अनुमति से एक महाशय ने स्ट्रास वर्ग को चढ़ाई का वर्णन लिखा इससे फ्रेंच सरकार को बड़ा खेद हुआ और उता महाभय को दंड दिया और नेपोलियन को खिटज़र ल्यांड से निकाल देने क हेतु वहां के सरकार को लिख भेजा परंतु नैपोलियन आपही स्विटज़र त्यांड छोड़ कर पुनः इंगलैण्ड में गए.वहां दो बर्ष रह कर सन्: १८४० में फ्रांस का राज्य मिलने के हेतु प्रयत्न करते रहे और बीलोन पर चढ़ाई किया परंतु वह भी प्रयत्न निष्फल हुआ और पकड़े गए और इन के सह- कारी जितने मनुष्य थे सभी को जन्म भर के हेतु वहां के दुर्ग में कारागार हुआ इस दुर्ग में छः वर्ष पर्यंत रहे अनंतर सन १८४६ के मई महीने के २५ वी तारीख को अपूर्व वेश धारण कर को बेलजम में भाग कर फिर इंगलैंड में