[ ७२ । स्थिर कर सब लोग उसी शोर चले और साढ़े पांच बजे वहां पहुंचे। थोडे से पुलीस के सिपाही साथ में थे क्योंकि वहां यह आशा न थी कि कोई दुष्का- र्मा मिले-वहां सव रोग ग्रमित और श्रमित लोग रहते हैं। श्रीमान बहुत दूर पर्यंत एक टटू पर आरूढ थे और उनके सहचारी लोग भूमि पर चलते थे। हारियट पर्वत पर पहुंच कर लोगों ने किचितकाल विश्राम किया और फिर तीर की ओर चले । मार्ग में दो एक अमित व्यक्ति मिले और श्री- मान से कुछ कहने की इच्छा प्रगट की परंतु लीवर्ट साहेव ने उनसे कहा कि तुम लोग लिख कर निवेदन करो। दो साहेव भागे थे और और ले ग साथ में थे। उन लोगों को तीर पर पहुंचने के पूर्व ही अंधकार छा गया और श्रीमान के पहुंचते २ “ मशाल " जल गए । तीर पर पहुंच कर टीवर्ट सा- हेव पीछे हट कर किसी को कुछ आज्ञा देने लगे। शेष २• गन आगे नहीं बढ़े थे कि एक दुष्कर्मी हाथ में छुरी लिये द्रुतवेग से मंडल में आया औ श्रीमान को दो छुरी मारी एक तो वाम स्कन्ध पर और दूसरी दक्षिण स्कन्ध के पुढे के नोचे । अर्जुन नाम सिपाही और हाबिन्स साहेव ने उसे पकड़ा और वड़ा कोलाहल मचा और “ मशाल " बुत गए। उसी समय श्रीमान भी या तो करारे पर से गिर पड़े वा कूद पड़े। जव फिर से प्रकाश हुआ तो लोगों ने देखा कि गवर्नर जनरल बहादुर पानी में खड़े थे और स्कन्ध देश से रुधिर का प्रवाह वडे वेग से चल रहा था। वहां से लोग उन्हें एक गाड़ी पर रख कर ले गए और घाव बांधा गया परंतु वे तो हो चुके थे । जब उनकी लाश ग्लास गो नाम नौका पर पहुंची तो डाकृरों ने कहा कि इन दोनों धाओं में एक भी प्राण लेने के समर्थ था। परन्तु उस समय लेडी स्यो का साहस प्रशसनीय था, उन को अपने "राज" नाश की अपेक्षा भरतखण्ड के राज के नाश और प्रना के दुःख का बड़ा शोच हुआ स्टुअर्ट साहेव ने इस विषय का गवर्मेट को एक रिपोर्ट किया है और एक सार्टिफ़िकेट डाक्टरों के गोर से भी गवन्मट को भेजा गया है । हा ! शनिश्चर को ( १७ वीं) कलकत्ते की कुछ और ही दशा यी सव लोग अपना २ उचित कर्म परित्याग कर के विषन्नबदन प्रिन्स प घाट की और दौड़े जाते थे। वालक अपनी अवस्था को विस्मृत कर और खेल कुतू- हल छोड़ उस मानव प्रवाह में वहे जाते थे, वृद्ध लोग भी अपने चिरासन को छोड़ लकुट हाथ में, शरीर कांपते हुए उन के अनुसरण चले-स्त्री नेचारी
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