पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२९२

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प्राण दण्ड देना तो उस की मुंह मागी बात देनी है क्योंकि मरने से डरता तो ऐसा कर्म न करता, सम्पादक महाशय लिखते हैं कि ये दुष्ट प्राण से प्र- तिष्ठा और धर्म को विशेष मानते हैं इससे ऐसा करना चाहिये जिस में इन दुष्टों का सुख भंग हो और धर्म और प्रतिष्ठा दोनों को हानि पहुंचे वह लिखते हैं (और बहुत ठीक लिखते हैं अवश्य ऐसा ही बनन इस से बढ़ कर होना चाहिये ) कि उस को प्राण अभी न लिये जायं और उसे खाने को वह बस्तु सिलें जो " हराम" हैं और वस्त्र के स्थान पर उस को सूअर के चर्म की टोपी और कुरता पहिनाया जाय यावच्छक्ति उस को दुःख और अना- दर दिया जाय ऐसे नोच के विषय में जितनी नियता की जाय सब थोड़ी है और ऐसी समय हमलोगों को कानन छप्पर पर रखना चाहिए और उस को भरपूर दुःख देना चाहिये।

श्रीमान् लार्ड स्यो वर्गबासी के मरने का शोक जैसा विहानों की मंडली में हुआ वैसा सर्वसाधारण में नहीं हुआ इस में कोई सन्देह नहीं कि एक बेद जिसने यह समाचार सुना घबड़ा गया पर तादृश लीग शोकाक्रान्त न हो गए इसका मुख्य कारण यह है कि लोगों में राजभक्ति नहीं है निस्सन्देह किसी समय में हिन्दुस्तान के लोग ऐसे राजभत्ता थे कि राजा को साक्षात् ईश्वर की भांति मानते और पूजते थे परन्तु सुसल्मानों के अत्याचार से यह राज भक्ति हिन्दुओं से निकल गई। राज भक्ति क्या इन दुष्टों के पीछे ससी कुछ निकल गया विद्या ही का वैसा आदर न रहा अब हिन्दुस्तान में तीन बात का बड़ा घाटा है वह यह है कि लोग विद्या, स्त्री रामा का तादृश खरूप ज्ञान पूर्वक शादर नहीं करते विद्या को केवल एक जीविका की वस्तु समझते हैं वैसे ही स्त्री को केवल काम शान्तार्थ वा घर की सेवा करने वाली मात्र जानते हैं उसी भांति राजा को भी केवल इतना जानते है कि वह मुझ से बलवान है और हम उस के वश में है राजा का और अपना सम्बन्ध नहीं जानते और यह नहीं समझते कि भगवान की ओर से वह हम लोगों के सुख दुख का साथी नियत हुआ है उससे हम भी उस के सुख दुःख के साथी हो।

हम अाशा रखते हैं कि श्रीमान गवर्नर जनरल बहादुर के अकाल मृत्यु का समाचार अब सब को भली भांति पहुंच गया। हम लोगों ने जिस समय यह सम्बाद बुना शरीर शिथिलेन्द्रिय और वाक्य शून्य हो गया । यदि