पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/३१३

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नाम भी नहीं जानता और इनको भावालवृद्ध वनिता सब जानते है ।सुहम्म- द ने अपने सुग्छ से कहा है कि ईश्वर ने संसार की सव स्त्रियों से फातिमा को श्रेष्ट किया । इन्हीं ने आठ बरस तक जिस प्रसाधारण निष्टा और परम अधा से पिता की सेवा की पराकाष्टा की है वैसी सन्देह है कि विासी स्त्री ने भी न को होगी और न ऐसी पिट गतप्राणा नारीरन और कहीं उत्पन्न हुई होगी । सहात्मा मुहम्मद क्षण भर भी दृष्टि से इन को दूर रखने में कष्ट पाते थे। पिता के अन्तौकिक दृष्टान्त और उपदेशों के प्रभाव से शैशवावस्याही से इन को अत्यन्त धर्मनिष्ठा थी। इनका सुख भोला भोला सहज सौन्दर्य से पर्ण और सतोगुणो तेज से देदीप्यमान था। कभी इन्हों ने सिंगार न किया खांसारिका सुख की ओर यौवनावस्था में भी इन्हों ने तृण मात्र चित्त न दिया। धर्म की विमल ज्योति और ईश्वरी प्रताप इनको चिहरे से प्रगट था। धर्म साधन और कठिन वैराग्य व्रतपाल नही में इनको आनन्द मिन्त ता था और अनशनादिक नियमही इनका व्यसन था। इन के समस्त चरित्र में से दो एक दृष्टान्त खरूप यहा पर लिखे जाते हैं। महात्मा मुहम्मद के चचेरे भाई और परम सहाय वा आदरणीय अन्तीसे इन का विवाह हुआ और सुप्रसिद्द हसन हुसैन इनकी दो प्रिय पुन थे। एक वेर कुरा वंशीय अनेक संत्रान्तजन महात्मा सुहम्मद के पास पाए . और बोले कि यद्यपि हमारा आपका धर्म सम्बन्ध नहीं है पर हम आप एकही वंश के और एक ही स्थान के हैं इससे हम लोगों की इच्छा है कि हम लोगों के यहां जो अमुक आप सम्बन्धी का असुका से विवाह होने वाला है उस कार्य को आप की पुत्री फातिमा चल कर अपने हाथ से सम्पादन करै । महात्मा मुहम्मद ने अच्छा कहकर विदा किया गौर आप फातमा के निकट पाकर कहने लगे वत्से ! लोगों से सद्भाव, तथा शत्रुओं का उत्पीड़न सहन करना और शत्रुतारूपी विष को कृतज्ञता रूपी सुधा भाव से पानही हमारा. धर्स हैं। आज अरब के अनेक मान्य लोगों ने अपने विवाह में तुम को बुन्ता- या. यह हमारी इच्छा है कि तुम वहां जाओ परन्तु तुम्हारी क्या अनुमति है हम जानना चाहते हैं। फातिमा ने कहा ईश्वर और ईश्वर के भेजे हुए भाचार्य की प्राज्ञा कौन उल्लंघन कर सकता है हम तो आप को आनाधीना दासी हैं इससे हमारी सामयं न हों कि आप की आज्ञा टालें । हम विवाह सभा में जायंगे परन्तु इस को शोच यह है कि हम मोटा वस्त्र पहन के