पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/३१५

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थीं कि आज हम लोगों की सभा में महात्मा सहम्मद की वेटी फटा कपड़ा पहनकर आवेगी और हम लोगों के उत्तम वस्त्राभूषण देख के आज वह भली भांति लज्जित होगी इतने में विद्यु लता की भांति साम्हने से फातिमा को शोभा चमकी और बिवाह मण्डप में इनके पाते ही एक प्रकाश होगया। फातिमा ने नत्र भाव से सब स्त्रियों को यथा योग्य अभिवादन किया परन्तु वे सब स्त्रियां ऐसी हतबुद्धि और धैर्य रहित हो गई कि वे सलाम का उत्तर न दे सकी। फातिमा का सुख चन्द्र देख कर अभिमानिनी स्त्रियों के हृदय कसल मुरझा गये और आंखों में चकचौंधी छा गई सब की सब घबड़ा कर उठ खड़ी हुई और आपस में कहने लगी कि यह किस महाराज की कन्या और किस राजकुमार की स्त्री है । ऐक ने कहा यह देवकन्या है। टूसरी बोली नहीं कोई तारा टूट कर गिरा है । कोई बोली सूर्य की ज्योति है। किसी ने कहा नहीं नहीं आकाश से चन्द्रमा उतरा परन्तु जिनके चित्त में धर्मावासना थी उन्हों ने कहा कि यह ईश्वरी ज्योति है यह अनेक अनुमान तो लोगों ने किये परन्तु यह सन्देह सब को रहा कि कोई होय पर यह यहां क्यों आई है अन्त में जब लोगों ने पहचाना कि यह बीबी फातिमा है तो सब को अत्यन्त लज्जा और आश्चर्य हुआ सब से ऊचे आसन पर उन को लोगों ने बैठाया और आप सब सिर संका कर उनके आस पास बैठ गई काई उन में से हाथ जोड़ कर बोली हे महापुरुष महम्मद की कन्या ! हम लोगों ने आप को बड़ा कष्ट दिया हम लोगों के कारण जो आप के नित्य काम में व्यवधान पड़ा हो उसै क्षमा कीजिये और हमारे योग्य जो कार्य हो आज्ञा कीजिये हम लोगों को जैसा अादेश हो वैसा भोजन और शरवंत आप के वास्ते सिद्ध कारें । बीबी फातिमा ने विनय पूर्वक उत्तर दिया भोजन और शरबत से हमारा सन्तोष नहीं हमारा और हमारे पिट- देव का विषय में विराग सहज सुभाव है अनशन व्रत हम लोगों को सुखाद भोजन के बदले अत्यन्त प्रिय है हमारा और हमारे पिता का सन्तोष ईश्वर को प्रसन्नता है तुमलोग देवी, देवता भूत, प्रेत इतपादिकी पूजा और पाखण्ड वस्त्राभरण पहिना दिया वैसे हो अनुमान होता है कि अपने आचार्य महात्मा मुहम्मद की बेटी को वस्त्रहीन देख कर उन के किसी धनिक सेवक ने अमन्य वस्लाभर गण से उन को सजा दिया ।