पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/३१९

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[ १२ ] नामक एक व्यति ने एक दुचारिनी नारी के प्रलोभन में उसकी कुमंबना के खीय धर्माचार्य अली को खयं करवालाघात से निहत विाया यह उससे भी भयंकर व्यापार है। वनसुलज़म के भाव चरित्र की चंचलता देखकर पहिल ही उसको ऊपर अली का संदेह हुआ था । एक दिन इवन सुलज़म ने अली को एक उत्कृष्ट सामग्री उपहार दी थी, अली उस उपहार के प्रति अनादर प्रदर्शने कर के बोले कि हम तुमारे इस उपढौकन ग्रहण में नहीं प्रस्तुत है तुम परिनाम में हमको जी उपढौकन प्रदान करोगे उसके लिए हम विशेष चिन्तित है। इसके कुछ दिन पीछे अली शिष्य सण्डलीकसाथ कूफानगर में उप- स्थित हुए। वहां इवन् सुलजस ने कुत्तामा नाम की एक दुश्चरिया विधवा युवती के सौंदर्य से मुग्ध होकर उससे परिनय अभिलाषा प्रगट की। कुत्तामाने उसको प्रलोभन जाल में प्रावध करके कहा हमारा तीन पण हैं सो पूर्ण करने से हम तुम्हारे साथ व्याह में सन्मत हैं। एक सहस दिरहम ( तानमुद्रा विशेष ) एक जन सुगायिका सुन्दरी दासी और मुहम्मद की. जामता अली का धध साधन । यह सुनकर इवन् सुल लज़म बोला । पहिला पण दोनों कठिन नहीं है वह संसाधन कर सकेंगे, किन्तु तीसरा पण गुरुतर है हमके संसाधन में हम अक्षम हैं। कुत्तामा बोली शेषोक्तपणही सब में प्रधान है, अस्लो हमारे पिटकुल का शत्रु है, उसका प्राणसंहार बिना किए कोई भांति बिवाह नहीं हो सकता है । दुरात्मा एवन सुलजस उसका सुदृढ़ पण देख कर उसमें भी सन्मत हुआ । एवं विषाक्त तीक्षण करवाल के द्वारा गुरु को हतमा करने का सुयोग देखने लगा। एक दिन निशीथ समय में अली कफाकी जामा मसजिद के दरवाजे पर खड़े होकर नमाज में प्रवृत्त हैं उत्त समय सुयोग समझ कर अतर्कित भाव से उसने अली के सिर में एक भाघात किया। अली पाघात पाकर चिल्ला कर अतल शायी हए। शोनित स्रोत से मसजिद प्लावित हो गई। उनके आहत मस्तक से मस्तिष्क उद्भिन्न हो कर गिरा । दुरात्मा इवन् सुलजम उसी क्षण त हो वार बन्दी हुआ। पीछे उस ने दुष्कर्म का समुचित प्रतिफलभोग किया। अली ने दो दिवस विष की विषम यन्त्रना भोग करके बन्धु बर्ग को शोक सागर में मग्न कार के परलोक गमन किया। मृता काल में खोय प्रियतम पुत्र हसन को यह अनुमति दिया कि हमारा देह निशीथ समय में किसी निभृत स्थान में निहित करना वही कार्य में परिणत हुआ। जब हसन पिटदेह भूमि निहित करके लौटते