[ ७ ] महारानी विक्टोरिया ।। ऐसी अवस्था में कि हाल में पार्लमेन्ट की जो सभा हुई. उन में एक एक पास हुआ है जिस के द्वारा परम कृपालु सहारानी को यह अधिकार मिला है कि यूनाइटेड किंगडम और उस के आधीन देशों को राजसम्बन्धी पद- वियों और प्रशस्तियों में श्रीसती जो कुछ चाहें बढ़ा लें और इस ऐक में यह भी वर्णन है कि ग्रेट ब्रिटन और आयरलैण्ड के एक में मिल जाने के लिये जो नियम बने थे उन के अनुसार भी यह अधिकार मिला था कि यूनाइटेड किंगडम और उस के आधीन देशों को राजसम्बन्धी पदवी और प्रशस्ति इस्त्र संयोग के पीछे वही होगी जो श्रीमती ऐसे राजाज्ञापत्र के द्वारा प्रकाश क- देंगी जिस पर राज को सुहर छपी रहे और इस ऐक में यह भी वर्णन है कि ऊपर लिखे हुए नियम और उस राजाज्ञापत्र के अनुसार जो १ जनवरी सन १८०१ को राजसी सुहर होने के पीछे प्रकाश किया गया हम ने यह पदवी ली “विक्टोरिया ईश्वर की कृपा से ग्रेट ब्रिटन और आयरलैण्ड के संयुक्त राज की महारानी स्वधर्म रक्षिणी,” और इस ऐक में यह भी बर्णन है कि उस सियम के अनुसार जो हिन्दुस्तान के उत्तम शासन के हेतु बनाया गया था हिन्दुस्तान के राज का अधिकार जो उस समय तक हमारी ओर से ईस्ट इण्डिया कम्पनो को सपुर्द था अब हमारे निज अधिकार में आ गया और हमारे नाम से उसका शासन होगा इस नये अधिकार की हम कोई विशेष पदवी लें, और इन सब बर्णनों के अनन्तर इस ऐक में यह नियम सिद्ध किया गया है कि ऊपर लिखी हुई बात के स्मरण निमित्त कि हम ने अपने मुहर किये हुए राजाज्ञापत्र के द्वारा हिन्दुस्तान के शासन का अधिकार अपने हाथ में ले लिया हम को यह योग्यता होगी कि यूनाइटेड किंगडम और उस के प्राधीन देशों की राजसम्बन्धी पदवियों और प्रशस्तियों में जो कुछ उचित समझे बढ़ा लें इस लिये अब हम अपने प्रिवी काउन्सिल की सम्मति से योग्य समसकर यह प्रचलित और प्रकाशित करते हैं कि भाग को, जहां सुगमता के साथ हो सके, सब अवसरों में और सम्पूर्ण राजयनों पर जिन में हमारी पदवियां और प्रशस्तियों लिखी जाती हैं, सिवाय सनद, कमिशन, अधिवारदायक पत्न, दानपत्र, आज्ञापत्र, नियोगपत्न, और इसी प्रकार के दूसरे पत्रों के जिन का प्रचार यूनाइटेड किंगडम के बाहर नहीं है, यूनाए- 6.
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