पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/३६३

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ॐ कालात्यने अगवते श्रीकृष्णाय नमः ममिका । हाय ! इस कालचक्र' को पूरा करके छपाने को भी नौबत न पहुंची कि पूज्यपाद भारतेन्दु जी आप ही कालचक्र के कराल गाल में जा फंसे ! अस्तु भगवदिच्छा, अब कोई बश नहीं। यह उन का परिश्रम आप लोगों की सेवा में भेट किया जाता है, यदि इस से आप लोगों को कुछ भी सहायता मिलेगी तो सब परिश्रम सुफक हो जायगा। बनारस ) सेवक वैशाष कृष्ण १ सं० १९४९. श्रीराधाकृष्ण दाल