महाराष्ट्र देशा का इतिहास । महाराष्ट्र देश का सृद्धलाबद्ध इतिहास नहीं मिलता। शालिवाहन राजा यहां के पुराने राजों में गिना जाता है। इसने शाका चलाया है और यह भी प्रसिद्ध है कि इसने किसी विनाम को मारा था। इस की राजधानी प्रतिष्ठान थी जिसे मान बैठरा कहते हैं। देवगिरी का राज्य यहां सल्मानों के आगमन तक खाधीन था और रामदेव वहां का आखिरी खतम्ल राजा हुना। तेरहवें शतक में मुसलमानों ने देवगिरी ( देवगढ़) विजय कर के उस का नाम दौलताबाद रक्खा । सन् १३५० को लगभग दिल्ली के बादशाह को माफर या नारका सूबेदार ने दक्षिण में एक मुसलमानी खतंत्र राज्य स्था- पर किया और वह पहले एक बाबा का सेवक था इस से अपना पद ब्रा- रण रखता था। इस वंश ने पहिले कलवर्ग में पिार विदर में अन्दाजन डेढ़ सौ बरस राक्ष किया। सन.१५०० के. लगभग इल राज की पांच शाखा हो गई थी जिन में गोलकुंडा बीजापूर और अहमद नगर वाले विशेष बली थे। इस वंश को राज में सन् १३८६ में बारह बरस का दक्षिण में एक बड़ा भारी काना पड़ा था। हिन्दुनों में उस समय कोंकण में सिर का नाम का केवल एक लाधीन सरदार था बाकी सब लोग इन के आधीन थे, ब्राह्मणी राज्य नाश होने की समय सन् १४८६ ई० में वास्कोडिगामा पुर्तगाल लोगों के साथ कालीकट में प्रथम प्रवेश किया और सन् १५१० में गोत्रा उन लोगों के प्राधीन हो गया। बीजापूर के बादशाह जदलशाही और गोलकुंड के कुतुब- शाही और अहमद नगर के निशामशाही कहलाते थे । सन्.१६२८ में अह- मद नगर की दादशाहत दिल्ली के अधिकार में हो गई और गोलकुंडा और बीजापूर श्री लन् १६८७ ई० में दिल्ली में मिल गए। सहाराष्ट्रों का राज स्थापन करने वाला सेवा जी सन् १६२७ ई० में उत्पन्न हुआ। __उस दो पूर्वजों का नाम भोंसला था जो लोग दौलताबाद को पास वेरूल गांव में रहते थे। शिवा जी का हाहा मालोजी भोसला अपने वंश में पहिला प्रसिद्ध मनु- प्प हुआ और उसने अपने बेटे शहा जी का विवाह अहमद नगर को बाद-
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