पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/६५

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चन्द्रराय ये नाम नाम से मिलते हैं । Bombay Gerernment Selection Vol. III. P. 193 टाड साहब लिखते हैं कि भलोगों ने दूसरे ग्यारह नास यहां पर लिखे हैं। परन्तु प्रिसिप साहब के नाम से दोलाराय के पीछे हरि- हरराय [टाड साहब के मत से हर्षराय ] सन् ७७४ ई० में हुआ और इस ने सवुकतगी को लड़ाई में हराया, फिर बली अगराय (बेल नदेव Tod ) हुआ जो सुलतान महमूद के अजमेर को युद्ध में मारा गया। उस के पीछे प्रथम राय और उस को लंगराज. (प्रमिलदेव ) हुप्रा । अमिलदेव के बाद विशाल देव राजा हुआ । ( विल फर्ड २०१६ ई०, लिपि १०३१ से १०८५ ई. तक टाल साहब के मत में चन्द के रायसे के अनुसार सम्बत् ८२१ में और फीरोज को एक लिपि से १२२० संबत ) फिर सिरंगदेव [ सारंगदेव वा श्रीरंगदेव, ] अन्हदेव [ जिस ने अजमेर में अन्हसागर खुदवाया .], हिसपाल | हंसपाल ] जयसिंह तारीख फिरिश्ता का जयपाल जो प्रिन्सिप साहब के मत से सन ८७७ ई० में हुआ, आनन्ददेव [ आमन्दपाल वा अजयदेव सन् १००० ई..] मोमेश्वर [ जिमने दिल्ली के राजा अनङ्गपाल की बेटी से ब्याह किया] पृथी- राय [ लाहोर का जिसे शाहाबुद्दीन ने कत्ल किया ११७६ ] रायनसी (रायसिंह जो ११८२ में दिल्ली के युद्ध में मारा गया) विजयराज और उस के पीछे ल कुनसी (लहानसिंह ] हुआ जिस की सत्ताईसवीं पीढ़ी में वर्त- मान समय के नीमरान को राजा हैं। अब टाड साहब का मत है कि हाडालोगों का बंश माणिक्य देव की शाखा में वा विशाल देव के पुत्र अनुराज से यह बंश चला है। प्रिन्सिप साहब अनुराज ही से हाड़ा लोगों को बंशावली लिखते हैं। किंतु बूंदी के सट्ट संस्ट- हीत ग्रन्थों में और तरह से इस बंश की उत्पत्ति लिखी है। ये लिखते हैं* "बशिष्ट जी ने आबू पहाड़ पर यज किया उस से चार उत्तम पुरुष उत्पन्न ____* अग्नि कुल की उत्पत्ति पुराणों में इस तरह लिखी है। जब परशुराम जी के मारे क्षत्रिय कुल का नाश हो गया तब उन्हों ने पृथ्वी की रक्षा के हेतु नन्ता कर के आबू पर्वत पर ऋषियों से इस विषय का परामर्श कर के सब 1. माथ क्षीरसागर पर जा कर भगवान की स्तुति किया । आज्ञा हुई कि चार कुल उत्पन्न करो। फिर ऋषियों के साथ ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, और इन्द्र आबू पहाड़ पर आये; और वहां यज्ञ किया। इन्द्र ने पहले अपनी शक्ति से