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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/८

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भूमिका

भारतवर्ष के निर्मल आकांश में इतिहास चन्द्रमा का दर्शन नगें होता क्योंकि सारतवर्ष की प्राचीन विद्याओं के साथ इतिहास का भी लोप हो गया। बाछ तो पूर्व समय में गृहन्लावद्ध इतिहास लिखने की चाल ही न थी और जो कुछ वचा बचाया था वह भी कराल काल के गाल में चला गया। जैनों ने वैदिकों के अन्य नाश किए और वैदिकों ने जैनों के। एक राजधानी में एक वंश राज्य करता था जब दूसरे वंश ने उस को जीता तो पहले वंश को संपूर्ण वंशावती के ग्रन्य जला दिए। कवियों ने अपने अन्नदाता के झूठी प्रशंसा की कहानी जोड़ ली और उनके जो शनु धे उनकी सष कीर्ति लोप कर दीं। यह सब तो था ही अन्त में मुसल्मानों ने आकर जो कुछ वर्षे वचाए अन्य थे जला दिए। चलिए छुट्टी हुई। ऐसी काली घटा शई कि भारतवर्ष के कीर्तिचन्द्रमा का प्रकाश ही छिप गया। हरिचन्द्र,राम,युधिष्ठिर छ महानुभावों की कीर्ति का प्रकाश अति उत्कट या इसी से घनपटल को वेव कार अव तक हम लोगों के अंधेरे दृश्य को पालोक पहुंचाता है। किन्तु ब्रह्मा से ले कर आज तक और जितने बड़े बड़े राजा या बीर या पंडित या सहानुभाव हुए किप्ती का समाचार ठीक ठीक नहीं मिलता। पुराणादि को में नाम मिलता है तो समय नहीं मिलता।

ऐसे अंधेरे में कश्मीर के राजाओं के इतिहास का एक तारा जो इस लोगों के दिखलाई पड़ता है इसी को न्स कई सूर्य से बढ़ कर समझते हैं। मिवान्त यह कि भारतवर्ष में यही एक देश है जिसका इतिहास शृठलावद्ध देखने में आता है और यही कारण है कि इप्त इतिहास पर हमारा ऐसा नादर और आग्रह है।

कश्मीर के इतिहास में कल्हए कवि की गजतरंगिणी ही मुख्य है। यद्यपि कल्हण के पहले सुब्रत क्षेमेन्द्र हेलाराज नीलमुनि पद्ममिहिर और श्री छविल्लभ आदि अत्यकार हुए हैं किन्तु किसी के ग्रन्थ अब नहीं मिलते। कल्प ने लिखा है कि हेलाबाज ने बारह हजार अब्ध करवीर राजाओं के वर्णन के एकत्र किए थे। नीलसुनि ने इस इतिहास में एक बड़ा सा पुरा-ही बनाया था किन्तु हाय! अब वे अन्य कहीं नहीं लते। कश्मीर के वचे बचाए जितने अन्य थे सव दुष्टों ने जला दिए। पार्यों की मन्दिर सूर्ति आदि लें कारीमरो, किर्तिस्तभादिकों के लेख और पुस्तकों का इन दुष्टों के