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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/८०

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[८ ] (१५ सर्ग २७ श्लोक ) वाम जी से ब्रह्मा ने कहा है कि सीता लक्ष्मी हैं और आप कृष्ण हैं। (इस से हमारा बासुदेव शब्द वाला पहिला प्रमाण और भी दृढ़ होता है.) । * (१२८ सर्ग ३ लोक ) पुराणों का वर्णन है। (.१३० सर्ग) जब राजा लोग राज पर बैठते थे तब नज़र खिलअत- इत्यादि आगे भी ली और दी जाती थी। इसी सर्ग में लिखा है कि रामायण बाल्मीकि जी ने जो पहिले से बनाया हैं वह जो सुनता है सो सब पापों से छूट जाता है। इस से (पुसलतं) पद से जैसे मनु का शास्त्र भृगु ने एकल किया वैसे ही बाल्यीकि जी की कबिता भी किसी ने एकत्र किया है यह संदेह होता है। इसी सर्ग के १२० श्लोक में लिखा है कि जो रामायण लिखते हैं उन को भी पुण्य होता है। इस से उस काल में पोथियां लिखी जाती थीं यह भी स्पष्ट है। उत्तरकाण्ड-उत्तरकाण्ड में बहुत सी बातें अपूर्व और कहने सुनने के योग्य हैं पर अंगरेज़ विहानों ने उस के बनने का काल रामायण से पीछे साना है इस से हमारा उन बातों के लिखने का उत्साह जाता रहा तब भी जो बातें विशेष दृष्टि देने के योग्य है यहां लिखी जाती हैं। (४४ सर्ग श्लोक ४२ । ४३ ) रावण शिव जी की पूजा करता था . इस से दयानन्द खामी का यह कहना कि रामायण में मूर्ति पूजा नहीं है खंडित होता है हां यदि वे भी यह कह दें कि यह कांड क्षेपक है या नया बना है तो इस का उत नहीं। ( ५३ सर्ग श्लोक २०, २१, २३) श्रीकृष्णावतार का वर्णन है। विदित

  • पाणिनि के सूत्रों में भी वासुदेव आदि शब्द मिले हैं। इस विषय का

विस्तार हमारे प्रबन्ध वैष्णवता और भारतवर्ष में देखो। • यत्रयवस्मयातीह रावणोराक्षसेश्वरः जाम्बूनदमयं लिङ्ग तत्रस्मनीयते ॥४२॥ वासुका वैदि सध्ये तुतलिङ्गस्थान रावण:अचयामासगन्धैश्चपुष्पैश्चकृतगन्धिभिः ४३ ६ उत्पल्यतेहिलोकेऽस्मिन् यदूनां कीर्तिवर्धनः । वासुदेव इति ख्यातो विष्णुःपुरुष विग्रहः ।। २० ॥ सते मोक्षयिता शापात् राजस्तस्माद्भविष्यसि । कृताच तेन कालेन निष्कतिस्त भविष्यति ॥ २१ ॥ भारावतरणार्थहि नरनारायणावुभौ । उत्पत्सेत महावीरुकलीयुगउपस्थिते २२