पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२०५

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(१४८) प्राधा दूध दुहने के बाद ही मिल जाया करेगा । आपका उपाय तो बहुत ही सुन्दर और आसान निकला। यह सुन के मित्र को भी खुशी हुई कि उस वेचारे का लुटा-लुटाया हक मिल गया। किसान-सभा ने भी ठीक इसी तरह आसान उपाय किसानों को बता दिया है जिससे अपनी कमाई को पा सके और अपने परिवार का भरण- पोषण कर सकें। जमींदार इसीलिये सभा से घबराते हैं और उसे कोसा करते हैं । वह तो साझे वाली भैंस की तरह साझे का स्वराज्य चाहते थे, जिसमें पीछे चल के किसानों को वैसे ही ठग सके जैसे छोटे भाई को बड़े ने मीठी मीठी बातों से ठग लिया था। किसान सभा ने इसो ठगी से किसनों को पहले ही से आगाह कर दिया है। उसने कह दिया है साफ साफ, कि सामे का स्वराज्य धोखे की चीज होगी। खबरदार, किसान और जमींदार का स्वराज्य साझे का या एक नहीं हो सकता है । वह तो जुदा जुदा होगा। जो किसान का होगा वह जमींदार का नहीं और ज जमींदार का होगा उससे किसान कल हो जायँगे, जैसा कि मैंस के बारे में साफ देखा गया है। जमोदारों और उनके दोस्तों को इस बात का मलाल है कि किसान अब चेत गये हैं । वे यह बात मानने को तैयार नहीं कि जमींदारों और उनके दोस्तों की मदद से किसानों को स्वराज्य मिलेगा। वह तो मानते हैं कि अपने ही त्याग और परिश्रम से किसान-राज्य कायम होगा । यही कारण है कि जेल में पड़े पड़े वह टुटपुंजिये जमींदार साहब उन पर कुढ़ते थे।