पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/७

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ये संस्मरण लिखे तो गये जेल के भीतर ही १९४१ में; मगर इनके प्रकाशन में परिस्थिति-वश काफी देर हो गई है। फिर भी इनका महत्व ज्यों का त्यों बना है। सोचा गया कि जिस किसान-सभा से सम्बन्ध रखने वाले ये संस्मरण हैं, उसका इतिहास यदि इन्हीं के साथ न रहे तो एक प्रकार से ये अधूरे रह जायँगे। पाठकों को इनके पढ़ने से पूरा संतोष भी न होगा और न वह मजा ही मिलेगा। इसीलिये भूमिका स्वरूप किसान-सभा का संक्षिप्त इतिहास और उसका कुछ विस्तृत विवेचन भी इन संस्मरणों के साथ जोड़ दिया गया है और इस प्रकार एक पूरी चीज तैयार हो गई।

"कहीं-कहीं किनारे पर जो अंक लिखे गये हैं वह इस बात के सूचक हैं कि किस दिन कितना भाग जेल के भीतर लिखा गया था।"

बिहटा, पटना
१०.२.४७

––स्वामी सहजानन्द सरस्वती