१५४ स्वायकुसुम बत्तोसधा - - कलम,-"आही नहीं सकती, क्योंकि तुम न तो हिकमत ही जानते हो और न औरत ही हो, पर इतना ज़रूर याद रक्खो कि मुझे कोई बाल-बच्चा होहीगा नहीं।" बसन्त,-" क्या तुम बांझ हौ ?" क सुम,-" तुम ऐसा ही समझो!" बसन्त,--"लेकिन इस बात को तुम ज़रा समझाकर कहो, जिसमें मेरी समझ मे आदे।" कुसुम,-"सुनो,-यूनानी-मिसरानी,-यानी 'तिला' और 'वैद्यकशास्त्र' तथा 'कामशास्त्र' को जिन्होंने अच्छी तरह समझा होगा, वे मेरी इन बातो को भली भाति समझ सकेंगे। सुनो-चुनी खूब पढ़ी-लिखी औरत थी और उसने 'निम्ब,' 'आयुर्वेद' और 'कामशास्त्र' को अच्छी तरह समझा था । उसीने मुझे भी इन शास्त्रो का बहुत कुछ भेद बतलाया है और फिर मैने खुद भी इन्द्र शास्त्रों पर बड़े ध्यान से भलीभांति बिचार किया है। उन शास्त्रों के देखने से यह बात मैंने अच्छी तरह समझली है कि, 'संसार मे कोई भी स्त्री झोझ ( बन्ध्या) नहीं है और यदि वह चाहे तो अपनी इच्छा के अनुसार बेटा या बेटी पैदा कर सकती है। और यह बान भी औरतों के ही हाथ में है कि, यदि वे चाहें तो उन्हें बेटा था बेटी-कुछ भी-न हो।" बसन्त,-(चकित होकर )" वाह ! यह तो तुमने आज एक नई बात सुनाई!!!" कुसुम,-'यह बात बहुत ही पुरानी है और फुर्सत के वक्त मैं इस विषय से सम्बन्ध रखनेवाली पुस्तकों की सैर तुम्हें ज़रूर कराऊंगी।" ___बसन्त,--"जरूर कराना, क्यों कि इस विषय में मैं तुम्हारा ही शागिर्द बनंगा।" कुसुम, (हंसकर ) "नहीं, नहीं, तुम तो मेरे ओस्ताद ही बने रहो!" बसन्त,-"जी, वह वहदा तो झगरूजी के साथ ही मिट गया!" कुसुम,-( मुस्कुराकर)"लेकिन तुम भी तो मेरे भंडवे बनने वाले थेना" बसन्त, (शर्माकर ) "भई वाई । रंडियों से बाजी ले
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