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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१४३

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१३४ स्वगीयकुसुम । (पतोसबा आया । फिर भी कुसुम की प्रार्थमा तुरन्त मानी गई और राजा साहब ने एक निराले कमरे में उम्मसे मुलाकात करने का विचार ठीक किया। इसके बाद राजासाहब अपने बाग के एक निराले कमरे में जाकर नदी पर बैठ गये और कुसुम के बुला लाने के लिये एक सिपाही रवाना किया गया। थोड़ी ही देर में कुसुम आ पहुंची और उसने बहुत ही अदब के माथ घुटने टेककर राजासाहब को प्रणाम किया। इसके बाद वह उठकर हाथ जोड़े और सिर झुकाए हुई राजासाहब के सामने खड़ी हो गई। यह देख राजा कर्णसिंह ने कहा,तुम किसी तरह का सकांच न करो और बैठ जाओ।" यह सुनकर कुसुमकुमारी राजामाहय के सामने. मगर उनकी गही से जग दूर, सिर झुकाये और हाथ जोड़े हुए अदब से बैठ गई और बोली.--"मेरी ढिठाई आप क्षमा कीजियेगा, क्योंकि इस वक्त मैंने लाचारी से आएको तकलीफ़ दी है।" राजामाहब ने कहा.-"नहीं. नहीं: मुझे कोई तकलीफ नही हुई है और मैं बड़ी खुशी के साथ तुम्हारी बाते सुनंगा: लेकिन तुम यह तो बतलाओ कि तुमने दुशाले और इनाम के रुपये वापिम क्यों कर दिये !" कुसुम ने कहा,-"जी. इसका सबब मैं पीछ अ करूंगा: बिलल मैं जो कुछ इम वक्त आपसे कहूंगी. उम्मको काई तीसरा शख्स नो न सुन लेगा ?" राजामाहय.--'नहीं, इसका अन्देशा तुम जरा न करो; क्यो कि तुम्हारे लिखने के मुताबिक मैंने कई सिपाहियों को यह हुक्म देकर पहरे पर नईनान कर दिया है कि, 'हमारे हुक्म-बगैर कोई शख्स इस कमरे के अन्दर नातक हर्गिज़ न आने पावे, जच तक कि मैं किसी को खुद न वुलाऊं इस लिए तुम्हें जो कुछ कहना हो, उसे तुम बेखौफ होकर कह मकनी हो । यद्यपि गजासाहव ने कुसुम से वह जवाब दिया जो कि अभा ऊपर लिखा जा चुका है, लेकिन मनही मन वे इस उधेड़-बुन में लगे हुए थे कि -'यह रण्डी मुझसे क्या कहा चाहती है।" न कहा मापक आगे इस धक्त मैं एक एमी