पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१४५

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स्वगायकुसुम (पतीसमा है कि वह लडकी यहा बहुत सख्त बीमार भी हो गई थी लेकिन इस वक्त उस लड़की के जिक्र से क्या मतलन ?” कुसुम,-"मतलब, पीछे आप ही मालूम होजायगा, पहले आप यह तो बतलाइये कि चुन्नी की उस लड़की को आप पहचानते यह सुनकर राजा कर्णसिंह ने आंखे गड़ा कर देतक कुसुम के चेहरे की ओर देखा और ताज्जुब से कहा,-"ओ हो! क्या चुन्नी की लड़की तुम्ही तो नहीं हो ? ज़रूर तुम्ही चुन्नी की लड़की होगी! ठीक है, ठीक है, अच्छ कोई शक न रहा! मैने अकसर बाबू साहब के दरबार में चुन्नी के साथ तुम्हें देखा है और मेरे कंवर साहय की शादी में भी तुम चुन्नी के साथ आई थीं, लेकिन उस वक्त से इस वक्त मे बहुत कुछ फ़र्क आगया है, इसी वजह से तुमको मैं यक-क्यक न पहिचान सका! कुसुमकुमारी तुम्हारा ही नाम है न ?” कुस्तुम ने कहा,-"जी हां, अब आपने मुझे अच्छी तरह पहिचान लिया! मेरा ही नाम कुसुमकुमारी है और मैं ही चुन्नी की पाली हुई लड़की हूं।" कर्णसिंह,-या तुम सिर्फ चुन्नी की पाली हुई हो और उसके पेट से पैदा नही हुई हो?" कुसुम ने कहा,-'जी नही, मैं चुन्नी के पेट से पैदा नहीं हुई हूं, सिर्फ उसको पाली हुई हूं।" कर्णसिंह,-"आह, यह नी नुमने एक अजीब बात सुनाई!" कुसुम,-"कैसे?" कर्णसिंह,-' ऐसे, कि, ऐसी ऐसी खूबसूरत लड़कियांरंडियों को कहां से मिलजाया करती हैं ! " कुसुम ने ताने के साय कहा.-"क्यों ? ऐसी ऐसी लड़कियो की उस देश में कमी कहाँ है, जिस देश के उदार और धर्मात्मा लोग अपनी नादान लड़कियों को व्यभिचार और वेश्यावृत्ति अबलम्बन करने के लिये देवताओं को चढ़ा दिया करते हैं!" यह एक ऐसी बेढय जान थी कि जिसने राजा कर्णसिंह के कलेजे में मानों जहरीला नश्तर चुभा दिया ! इस नोट की भयानक जलन उठे और दोनों हाथो से अपने कलेजे को भरजोर ने गो सरे यह तमन मानहा?" से वे