पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१५५

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स्वगायफुसम। (उच्चीसवा शख्स के साथ शादी करके अपना धर्म बचाया और दूसरी शादी उसकी इसलिये कर दी कि, "जिसमें मेरे कारण वह शख़्स समाज से पतित न होजाय और सन्तान-सन्तति के बिना उसके पुरखों के पिण्ड-पानी का लोप न हो जाय।' इसके अलावे फूफासाहब (भैरोसिह = मोतीसिंह) की बेशुमार दौलत भी ठिकाने से लगजाय, क्योंकि गुलाब के अलावे अब फूफासाहब के नज़दीकी रिश्तेदारों में ऐसा कौन है, जिसे उनकी बेशुमार दौलत का हकदार बनाया जाय, इसलिये गुलाबही के साथ यह शादी कराई गई, क्योंकि अपनी "बूआ" और "फूफा" की दौलत की इस समय एक गुलाब ही हकदार है, इस बात को शायद आपने अब अच्छी तरह समझ लिया होगा।" कर्णसिंह ने कहा,-" हां, अब तेरा दिली मतलब मैने भली भांति समझ लिया। हाय, बेचारे मोतीसिह का कैसा भयानक परिणाम हुआ ! किन्तु,कुसुम ! यह तो संसार है, इसलिये यदि आगे चल कर तेरी गुलाब से, या गुलाब की तुझसे न बनी तोक्या होगा? क्योंकि सौत का रिश्ता तो बड़ा ही नाजुक होता है ! इस पर कुसुम कहने लगी,-"आपका कहना बहुत ही सही है और सौत"का रिश्ता दर असल बड़ा जहरीला होता है, लेकिन इस बात पर मैंने बहुत कुछ गौर कर लिया है कि आगे चलकर उसकी विवाहिता स्त्री से मैं सौतियादाह-कभीभी न करगी, इसीलिये मैने अपनी सगी (सहोदरा) बहिन के साथ उसकी शादी करदी है, क्योंकि चाहे मेरी छोटी बहिन मेरा असली हाल न जान कर मुझसे सौतियादाह भले ही करे. पर मैं जानबूझकर और खुद समझदार होकर उससे कभी भी जीते जी डाह नहीं करूंगी: मोंकि यदि मुझे सोतियाडाह ही करनी होती तो मैं खुद यह शादी ही क्यों कराती, बल्कि जहां तक मुझले होसकता, इस शादी को नहीं ही होने देतो; इसलिये हेपिताजी! अब आप गुलाब की ओर से बेफिक रहिए, और मुझे जिन्दगीभर के लिये बिदा कीजिए । यह मुझे मालूम होचुका है कि मेरी पूजनीया माताजी अब इस संसार में नहीं हैं, इसलिये अब व्यर्थ आप मेरी ममता में न फंसिये, मेरे छोटे भाई से भी मेरा रहस्य न कहिए और मुझे चिदा कीजिए । मैं भी इस भेद को जन्मभर अपने जो ही में छिपाए रहूंगो और अपनी छोटीहिन गुलाब पर, मरसक इस रहस्य को प्रगट न होने दूगी "