पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१७५

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स्वगायकुसुम । (उनचाळीसवा और सचमुच आज मेरे दिल का कांटा निकल गया! मापने जो कुछ कहा, वह अक्षर अक्षर सत्य है और लोग अपने अपने कर्मों का ही फल भोगा करते हैं। इसमें दूसरे लोग निमित्तमात्र तो अवश्य होते हैं, परन्तु अपनी करनी का फल अपने ही को भोगना पड़ता है; और कभी कभी ऐसा भी देखा जाता है कि जो लोग निमित्त- मात्र होते हैं, वे भी उस कर्म के फल के भागी बनजाते हैं; क्योंकि संसर्गों को भी कुछ न कुछ कर्मफल काभोग भोगना ही पड़ता है।" त्र्यम्बक ने कहा,-"और देख, इस समय मैं तुझे एक और विचित्र बात सुनाता हूं, जिस किश्ती की ठोकर खाकर तेरी नाव डूबी थी, उस किश्ती पर मैं सवार था और प्रातःकाल का समय हुआ जानकर आपही आप कुछ गा रहा था। मैंने उस नाव पर. जो कि पलक मारते-मारते उलट गई थी, कई लोगों के साथ तुझे भी देखा था; पर यह किले खबर थी कि तू उस काल के झपेटे से बच जायगी और तेरे साथ इस तरह मेरी मुलाकात होगी ! हुई, यह ठीक है कि उस समय मैंने तुझे पहिचाना न था। (१) कुसुम ने कहा, "उस समय तो मेरा ध्यान आपके गाने की ओर नहीं गया था, पर मैंने आपके गले की सी आवाज़ कभी सुनी है और शायद आपके गले से निकला हुटा एक करुणा से भरा कषित भी कभी सुना है। किन्तु कब सुना है, यह बात मुझे इस समय याद नहीं आती।” (२) पण्डाजी ने कहा, "यह होसकता है कि तूने कभी मेरे गले की आवाज सुनी हो, क्योंकि मैं अक्सर आरे भी आया करता था, परन्तु इस समय मैं भी यह नहीं बतला सकता कि तूने मेरी कौनसी आवाज सच सुनी थी, या कौनसा कवित्त किस समय सुना था! कुसुम,-"खैर, इसे जाने दीजिए और यह बतलाइए कि आप थारे भी अक्सर मोया करते हैं ?" ज्यम्बक,-"हां, यहां मेरे कुछ थोड़े ले यजमान हैं, इसलिये (8) इस उपन्यास के पहिले परिच्छेद में जिन उदासीन बाबाजी की धुरएद का हाल लिखा गया है, वे ये पण्डाजी ही थे। (२) और परिचोद देखो