पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिच्छेद कुसमापारी। चिना दाजिर; क्यो कि श्राजगहोश का बाम गो कासी से कुछ कम नहीं है।" त्र्यम्बक ने कहा,-"तेरा कहना ठीक है, किन्तु जो कुछ मैने सोच रक्खा है, अब मैं वही करूमाः इस लिये इस बारे में अधिक कहना-सुनना अय व्यर्थ है। मैं केवल तुझसे माफी मागने आया था, उसे बड़ी उदारता के साथ तूने देदिया, इसलिये मैं तुझे रोम-रोम से आशीर्वाद देकर अब बिदा होता हूं और आज ही काशी की और प्रस्थान करता हूं।" इतना कहकर वह पण्डा उठा और तेजी के साथ बाग़ से बाहर हो गया ! कुसुम ने उसे बहुत रोकना चाहा, बसन्त भी उसे लौटा लाने के लिये कुछ दूर तक दौड़ा गया, पर फिर वह नहीं ही फिरा और चला ही गया। जाली चार वह गुलाब के पास फिर नही गया था। इसी परिच्छेद में हम इतना और भी लिख देना चाहते हैं कि दा महीने के बाद कुलुम ने यह सुना कि, 'चह्न पण्डा ( पत्रक) परलोक सिधार गया !' इस खबर को सुनकर सचमुच कुसुम बहुत ही उदास हुई थी, और उसने त्र्यम्बक की परलोकगन-आत्मा को शान्ति प्रदान करने के लिये श्रीजगदीश्वर से बार बार प्रार्थना की थी। यह घटना ऐमी हुई थी कि जिसने कुसुम को कुछ दिनों तक फिर उदास बना दिया और भैरोसिंह का शोक उसके लिये मानों नया होगया! ___एक तो जबसे वह अपने बाप से विदा होकर आई थी, उसके चित्त की वृत्ति दूसरी ही होगई थी, उस पर पण्डा का परिणाम देखकर तो वन और भी उदास हो गई थी। उसके चेहरे का र फीका पड़गया था. उसका शरीर दुबलाया जाता था, उसने अच्छा अच्छा गहना-कपड़ा पहिरना-ओढ़ना छोड़ दिया था और उसके सिंगार-पटार आदि सारे शीक न जाने किथर सिधार गए थे' वह सदा थकले में केटी हुई रोया करती थी और किसीका साध उसे अच्छा नहीं लगता था'