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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२२०

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परिच्छेद) कुसुमकुमारी। २१५ कुलुम.--(सुम्नावर ) "हा ! क्यों मारा ?" मदन,---"मैंने थाली में से एक लड्डु, उठा लिया. इसलिये। और लड्डू भी छीन लिया ! - कुसुम,-"वों, गै! गुलाब ! तैने बच्चे को मारा क्यों ? और लड्डू खों छीन लिया ? " गुलाब ने काठ के अन्दर से जवाब दिया.-"जीजी : लड़ सामनियां घरे थे इमने जूठे हाथ से छलिया!" कुम्बुम,-"फिर. जलिया तो लिया, नैने मारा क्यों? सदार मेरे बच्चों को उंगली लगावेगी तो हाथ घा कर तोड़ दूंगी ! गुलाब,-(दबी जुबान ) जीजी ! तुमने लड़कों को बड़ा सिर चढ़ाया है, ये जरा नहीं डरते !" कुसुम.--."चल, बहने दे. चुपचाप रह !" मदन,-'मां मुझे लादा।" कुन्नुम ... मदन -"मैं दो लड्डु, लंगा।" चमेली भी कुसुम का कंधा पकड़ कर झुमती हुई बोली,--"मैं खाल लद्दलंगी। कुसुम,-"तू सार लङ्ग, लेगी ? " चमेला,-'आं! कुसुम,--( उसका गाल चूमकर ) पर. निगोड़ी! बार लड्डू भरेंगी कहाँ ?" इस पर चमेली ने कमुम के मुहं में उंगली डाल दी। छोटे साइन ग्ध म्न जी बोले,--"मैं छबलंगा।" कुसुम,-( खिलखिलाकर ) "तू सब लेगा? " प्रद्युम्न,-"t कसम,-"बस, सभोंमें समझदार और अनुरातूदी है फिर उसन गुलार का पुकार फर कहा 'लम को रफापी