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[दसवां
स्वर्गीयकुसुम


जल्द कही.-कहो! हाँ ! कहो।" यों कहती हुई वह बेताब होकर कुर्सी पर बदहवासी की हालत में गिर गई और उसकी आंखों से चौधारे आंसू बहने लगे । उसने दोनों हाथों से अपने कलेजे को भर-जोर दबा लिया और प्यादे की आर धवराहट से देखने लगी। जरा ठहरकर उसने कहा -" भैरोंसिंह ! अगर तुमको मेरे नमक का रत्ती भर भी खयाल हो तो, मैं हुक्म देती हूं कि जो कुछ असल हाल हो, उसे जहांतक जल्द मुमकिन हो, तुम कह डालो।" भैरों सिंह,-" मुझे हुजूर के नमक का कहां तक ख़याल है, इसका तो साक्षी नारायण है: पर मैं इसलिये उस जिगर पर चोट पहुंचानेवाले हाल के कहने में आस-पीछा कररहा हूं कि आपकी हालत उस ख़बर के सुनने लायक तब तक नहीं है.जब तक कि आप अपने दिल को पत्थर से भी बढ़कर मजबूत और पोढ़ान बनालें!" कुसुम,-" तो तुम आखिर कुछ न कहकर मेरी जान को दुविधा में डाल, हैरान करते रहोगे? खैर, मैं सब समझ गई; अच्छा, अब जो जुमला मैं कहती हूँ. उसके जबाव में तुम फ़क्त 'हां'- भर कह दो-बस इनसे ज़ीयादह कहने की कोई जरूरत नहीं है।" भैरों सह,-"फर्माइए ?" कुसुम.-" क्या उनके दुश्मनों ने इस दुनिया से कूंच---" इतना कहते-कहते उसकी बुरी हालत होगई. इसे देख भैरों सिंह ने चटपट कहा, “जी, नहीं, उनका अनमोल जीवन अभी तक ज्यों का त्यों कायम है।" कुसुम.-." तो फिर ?" भैरो सिंह,-" जरा गहरी चोट उन्होंने बेशक खाई है।" इतना सुनते ही पागल की तरह घबराकर कुसुम उठ खड़ी हुई और भैरों सिंह का हाथ थामकर बोली,-"जल्द मुझे वहां पहुंचाओ, जहां पर ये हों" भैरोंसिंह,---" मगर यह बात मेरे अख्तियार के बाहर है !" कुसुम,—(बेतरह बिगड़कर) "क्यों ?" ठीक इसी समय बाबू कुवर सह के ख़ास डॉक्टर ने उसके सामने पहुंचकर कहा कि, "बाबू साहब का ऐसा ही हुक्म है।"