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परिच्छेद]

कुसुमकुमारी

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कभी न आने पाती,और जो कदाचित आ भी जाती तो अपनी बेवकूफ़ी से अपना ही काम चौपट कर बैठती!बस, इन्हीं सब बातों को ख़ूब सोच-बिचार-कर मैंने अपने दिल पर पहाड़ रख लिया है और अब मैं आपकी मर्ज़ी-बमूजिब अपनी जान पर खेलकर हर- तरह से रोगी की सेवा-टहल करने के लिये तैयार हूँ।" डाक्टर,―" तो, अच्छी बात है; अगर बाबा सिद्धनाथ की दया हुई तो बाबू बसन्तकुमार को मैं बहुत जल्द आराम करदूंगा।" कुसुम,-" ईश्वर करे, ऐसा ही हो।" इसके बाद डाक्टर वसन्तकुमार के पास चला गया और कुसम दूसरे कमरे में जाकर एक कुर्सी पर बैठ गई। उस समय भैरोंसिंह ने आकर कुसुम का पैर पकड़ लिया और कहा,-"हुज़र ! मेरी रात की गुस्ताकी माफ़ करें, क्यों कि लाचारी से मुझे वैसा करना पड़ा था।" यह सुन कुसुम ने अपना पैर खेंच लिया और भैरोसिंह को उठने के लिए कहकर यों कहा,-"नहीं, नहीं, भैरोंसिंह ! कल की बात का ख़याल तुम बिल्कुल अपने दिल से भुलादो और इस वक्त एक वार फिर कल की वारदात का खुलासा हाल कहजाओ।" यह सुन भैरोंसिंह ने उठकर उन हालातों को फिर से दुहरा-कर कहा, जिन्हें हम पिछले परिच्छेदों में लिख आए हैं। इसके बाद कुसम ने बाबा सिद्धनाथ में पूजा-पाठ करने के लिए कई ब्राह्मणों को ठीक-ठाक करने के वास्ते भैरोंसिंह को हुक्म दिया और कई ब्राह्मणों को वाग़ में भी "महामृत्युंजय," "दुर्गापाठ "आदि जपानुष्ठान करने के लिए ठोक किया। इतने में थाने के एक मुन्शी ने आकर रात की वार्दात के बारे मे पूछ-ताछ की, जिसपर भैरोंसिंह ने यह कहकर उसे बिदा किया कि,-" वार्दात की इत्तला तो रात ही को करादी गई है; रहा खुलासा इज़हार,― सो जखमी के होश में आने पर होसकेगा।"