पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/६८

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प्यारे मन लोनो कहा, जान हमारी लीन । जीवतहूं कबहूँ सुन्यो, ख्वै मनि फनि कोउ दीन ॥ ७५ प्यारे तेरे सामुहें, राख्यो मन उपहार । चाहै चकनाचूर करु, चाहै करु हियहार । ७६ ॥ प्यारे जदपि गुमान कै, रूठे रहत हमेस। तदपि दरस दीवो करौ, सुंदर सुखद सुवेस ॥ ७॥ प्यारे बिरह-विथा बुरी, काहू को नहिं होय । लगै आंख ते आंख जब, लगै आंख नहि रोय।। ७८ ॥ प्यारे करवट लेत, नहि, बीतत रैन असीव । तुवबि-छुरे जनु नीद कों; आवत नीद अतीव ॥ ७ ॥ प्यारे मग-जावत थके, नैन अमाने रोय । तौहू दरसन ना मिल्यो, मरत पियासे दोय ॥ ८॥ प्यारे तेरी नवल छवि, नैनन रही समाय। रात दिना खटक्यो करै. नीद न आवत हाय ॥ ८॥ प्यारे कहाँ सु कौन बिधि, कहन देत नहि मैन । अपनो अमल जमाइ कै, निकसन देत न बैन ॥ ८२ प्यारे दिल के दरद की, देहु औषधी चाहि। जातें मनसिज-रोग यह, जनम-जनम को जाहि ॥ ८३ ! प्यारे चाह-निवाह की, बड़ी अनोखी रीति जल में कमल अकास रबि तोहू निबहत प्रीति ॥ ८४ ! प्यारे रस की गांठहूं, देत सुधारस खूब। गांठ गठीली ऊख जिमि, रस कोमाठ अजूब ॥ ८५॥ प्यारे रस नह गाँठ जह, यहै कहत सब कोय।। गैठजोर की गांठ मैं, देखु अधिक रस होय ।। ८६ ॥ प्यारे प्रेम सबै करें, प्रेम न जानत कोय। जो जानै करि प्रेम तौ, भरै जगत क्यों रोय ॥ ८७ ।। प्यारे दिल की चोट कों, देखहु नैन उधार । पैनी नैन-कटार जेहिं, करी करेजे वार ॥ ८८ ॥ प्यारे हिय के घाव पर, मरहम-नेह लगाइ । विधा विरह की हरहु अब, लाइ गरें, हरखाइ ॥८६॥ प्यारे करिबो चाह को, सहज कहैं सब कोय । पै करिबो निराहकों, अतिरि कठिन ब्रम होय ।