पृष्ठ:खग्रास.djvu/१३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३६
खग्रास

है। अमरीकी राकेट ने पृथ्वी से ५६ मील की ऊँचाई पर ऐसी सतह पाई है। यह तीन मील मोटी थी और इसकी चौड़ाई सीमित थी।

"उच्च आकाश मण्डल में इस प्रकार की तरंगो की विद्यमानता की कल्पना इन वैज्ञानिको ने ध्रुवीय-प्रकाश-आधारो और विभिन्न चुम्बकीय अद्भुत क्रिया कलापो की व्याख्या करने की दृष्टि से की होगी?"

"हाँ, परन्तु अभी इस सिद्धान्त की पुष्टि नहीं हुई है। इधर दक्षिण ध्रुव प्रदेशो में भी अमेरिका ने जो केन्द्र स्थापित किए है, उनके फलस्वरूप दक्षिणी गोलार्ध के मौसम की भविष्य वाणी में कुछ सुधार अवश्य हुए है।"

"क्या क्या सुधार हुए है?"

"दक्षिणी ध्रुव क्षेत्रो में व्यापक पैमाने पर तापमान के जो अध्ययन किए गये है, उनसे यह पता चला है कि ८५० मील की दूरी पर स्थित दो स्थानों के तापमान में १०० डिग्री का अन्तर होना सम्भव है।"

"परन्तु हम तो इस निर्णय पर पहुँच रहे है कि दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में शीत ऋतु प्रारम्भ हो जाने पर इस प्रदेश के ऊपर स्थित अयन मण्डल में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता। सूर्य की अनुपस्थिति में भी वायुमण्डल के ऊपरी हिस्से की शक्ति वैसी ही बनी रहती है।"

"यह अध्ययन रेडियो सम्वाद सचरण में बहुत लाभदायक होगा। दक्षिणी ध्रुव प्रदेश में अमेरिकनो ने ४० निरीक्षण केन्द्रो का जाल बिछाया हुआ है। और वे इस प्रदेश का पूरे वर्ष का मौसम सम्बन्धी नकशा तैयार कर रहे है जिससे यह पता लगाया जा सके कि उस क्षेत्र में तूफान कब और क्यों आते है। तथा मौसम परिवर्तन के क्या कारण है।"

"लेकिन उत्तरीय और दक्षिणी ध्रुवो में जो प्रकाश-धाराएँ दीख पड़ती हैं, उनसे क्या सूर्य के धब्बो और उसकी लपटो जैसी हलचलो का कोई सम्बन्ध है?"

"ब्रिटिश वैज्ञानिको ने दोनो ध्रुव प्रदेशो में एक साथ इन प्रकाश धाराओं का निरीक्षण करके यह महत्वपूर्ण रिपोर्ट दी थी कि दोनो ध्रुव प्रदेशो में भी ये प्रकाश-धाराएँ एक साथ दिखाई पड़ती है।"