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खग्रास

दक्षिणी वियतनाम ने पश्चिमी राष्ट्रों का समर्थन किया था। पीछे लंका और फिलीपीन पूरी तरह स्वतन्त्र विचार के समर्थक हो गए। पश्चिमी राष्ट्रों के समर्थक चाहते थें कि उपनिवेश वाद की निन्दा के साथ ही कम्युनिस्ट साम्राज्यवाद की भी निन्दा की जाए। अन्त में लम्बी बहस के बाद शान्ति स्थापन के लिए १० सिद्धान्त स्वीकार किए गए। जिनमें ३ सिद्धान्त पंचशील के तथा शेष पाकिस्तान और चीन द्वारा सुझाए गए थें। इस सम्मेलन की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि २९ एशियाई अफ्रीकी राष्ट्रों के आपसी सम्बन्ध काफ़ी बढ़ गए। परन्तु भारत पाक सम्बन्धों में इस सम्मेलन से कोई सुधार नहीं हुआ। परन्तु चीन के हक में एक बात अवश्य हुई—चाऊ के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर मिश्र, इण्डोनेशिया, लाओस आदि देशों ने कम्युनिस्ट चीन से सन्धियाँ कर ली। और अनेक अरब राष्ट्र भी चीन को मान्यता देने पर आमादा हो गए। इण्डोनेशिया में रहने वाले ३० लाख चीनियों को दोनों में से किसी भी देश की नागरिकता के अधिकार प्राप्त हो गए।

वाडुग सम्मेलन और पंचशील सिद्धान्तों के कारण भारत और इण्डोनेशिया के सम्बन्ध वैसे ही अटूट हो गए जैसे अब से हजारों साल पहिले थें। मलय-सिंगापुर और इण्डोनेशिया का यह सारा अन्तरीप जैसा प्रदेश हजारों छोटे-बड़े द्वीपों में बिखरा हुआ है। वह भूगोल, इतिहास तथा संस्कृति सभी दृष्टियों से महत्तर भारत का एक अङ्ग है। इण्डोनेशिया में सम्मिलित हजारों द्वीप हैं। वहाँ के आदिवासी मोगोल है। परन्तु उनकी प्राचीन संस्कृति का सम्बन्ध भारत से है। उन्होने वहाँ जाकर प्रथम हिन्दू धर्म का, फिर बौद्ध धर्म की हीनयान तथा महायान शाखाओं का प्रचार किया, उनका विशेष प्रभाव जावा-सुमात्रा तथा अन्य द्वीपों के सीमावर्ती प्रदेश तक सीमित रहा। पीछे सीमावर्ती लोगों ने इस्लाम ग्रहण कर लिया। १९ वीं शताब्दी में चीनियों का विशेष प्रवेश हुआ। प्राचीन इतिहास का कुछ पता पुराने शिलालेखों और चीनी आलेखों से मिलता है। १९ वीं शताब्दी के प्रथम चरण में पुर्तगालियों ने वहाँ प्रवेश किया। और आधी शताब्दी बीतते न बीतते पुर्तगाली-स्पेनिश और मुसलमान तीनों ने एक नया संकट खड़ा कर