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पृष्ठ:खग्रास.djvu/१६४

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खग्रास

अँधेरा था, आकाश मैला और स्याह था। धुन्ध छाई हुई थी। कम्पास प्रतिक्षण काँप रही थी—और बॉई ओर बारम्बार घूम जाती थी।

स्मिथ ने अपने पनडुब्बी के कप्तान रिचर्ड से कहा—केप्टिन, अब हम दक्षिण ध्रुव से अधिक दूर नहीं है, देखो वह सामने बर्फ की दीवार और उसके आगे बर्फ की खाड़ी है। अब हमे न जाने कितनी देर तक बर्फ की चट्टानों से मीलो नीचे—जल गर्भ में रहना पड़े। अच्छा हो एकाध ह्वेल मछली का शिकार हो जाए। इससे हमे ताजा मांस और बहुत सी चर्वी मिल सकती है। अब आगे तो हमें किसी जीव-जन्तु के मिलने की आशा नहीं है। केवल पैगन पक्षी ही यदा कदा मिल सकते हैं। कैप्टिन रिचर्ड ने कहा—मैं अभी नावे ह्वेल की तलाश में रवाना करता हूँ। सम्भव है ह्वेल मिल जाये। वसन्त ऋतु है, और अभी ज्यादा बर्फ नहीं पड़ी है। समुद्र शान्त है।

ह्वेल का शिकार

दिन धुँधला था। लेकिन कभी-कभी बादलों से सूरज झांक लेता था। हवा चीख रही थी और बर्फ की छोटी बड़ी चट्टानें पानी पर तैर रही थी। यदाकदा एकाध सफेद पक्षी पंख फड़ फड़ाता हुआ प्रेत सा हवा में उड़ता दीख जाता था। तीन किश्तियाँ समुद्र में ह्वेल के शिकार की टोह में धूम रही थी। उनके हर्द गिर्द बर्फ की ऊँची दीवार थी। जो सैकड़ों मील तक चली गई थी। और कोई डेढ़ सौ फुट ऊँची थी। किश्तियाँ दक्षिण दिशा को बढ़ती चली जा रही थी। कैप्टिन ने उन्हें बर्फ की दीवार से दूर तथा सावधान रहने को मतर्क कर दिया था। दक्षिण के क्वीन माउन्ड पहाड़ से बड़ी-बड़ी ग्लेशियरे लुढ़कती हुई दीवार में लीन हो रही थी। उधर पूर्व की ओर से ऊँची भूमि की बर्फ इनमें फिसल फिसल कर मिल रही थी। बड़ा ही प्रभावशाली दृश्य था। कभी-कभी बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े टूट-टूट कर समुद्र में बहने लगते थें जो बहुधा ४०-४० मील लम्बे होते थें। यहाँ क्षितिज था ही नहीं। केवल पीला आकाश और सफेद धुन्ध थी।

अन्ततः एक ह्वेल मछली मिल गई। वह नीली ह्वेल थी जो संसार का सबसे बड़ा प्राणी होता है। बड़ी ही आसानी से इस विशालकाय जन्तु को