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खग्रास

से केवल ८१ मीटर की ऊँचाई पर था। नगर में चारों ओर खुशहाली और जाहोजलाली के नज़ारे नज़र आते थें।

वर्तमान प्रशासन की दृष्टि से साइबेरिया को तीन भागों में बाँटा गया था। पश्चिमी साइबेरिया, पूर्वी साइबेरिया और सुदूरपूर्व। पश्चिमी साइबेरिया यूराल पर्वत से यनीसी पर्वत तक, और पूर्व साइबेरिया यनीसी नदी से लीना नदी तक था। लीना नदी से प्रशान्त महासागर तक सुदूरपूर्व का भाग था। ओमस्क नगर ओबी नदी की सहायक इरतिश नदी पर था और उत्तरी आर्कटिक सागर से बड़े-बड़े जहाज ओबी नदी होकर यहाँ तक आ जाते थें। नगर के चारों ओर गेहूँ के खेत लहलहा रहे थें। असल बात यह थी कि पश्चिमी साइबेरिया का दक्षिणी मैदान यूक्रेन से भी बड़ा गेहूँ का क्षेत्र था। नगर में गेहूँ के बड़े-बड़े एलीवेटर, आटे के मिल, तथा मांस के डब्बे भरने के कारखाने थें। खेती के औजारों और ट्रेक्टरों के भी अनेक कारखाने थें। यहाँ से पूर्वी साइबेरिया, मध्य एशिया के सोवियत गणतन्त्रों को यन्त्र भेजे जाते थें। ओमस्क शहर के दक्षिण पूर्व कुर्जनन्स बेसिन था जहाँ स्टालिन्सक नगर के आस-पास कोयले का अपार भण्डार है। लोहा भी यहाँ मिलता था। और अल्ताई यदेन से निकलने वाली अनेक नदियों से बिजली का उत्पादन होता था। लोहे और फौलाद के बड़े-बड़े कारखाने दक्षिण पूर्व के कुजनेत्सक घाटी में स्थापित थें। पश्चिमी साइबेरिया के इस भाग में जारशाही के दिनों में ही बहुत से किसानों को आबाद किया गया था, परन्तु सोवियत क्रान्ति के बाद लाखों यूक्रेनियन यहाँ आ बसे थें, जो बड़े पैमाने पर खेती कर रहे थें।

पूर्वी साइबेरिया के हरकुन्स्क क्षेत्र में भी ऐसे ही विकास का सूत्रपात चल रहा था। वहाँ लाखों एकड़ भूमि खाली पड़ी थी। लाखों एकड़ भूमि को तोड़ा जा रहा था। और वहाँ किसानों के कस्बें जाबजा बसाए जा रहे थें। इस प्रदेश की सूखी दलदली काली धरती गेहूँ के लिए अतिशय उपयुक्त थी। बर्फ पड़ने के दिनों में भी वहाँ नई किस्म के गेहूँ पैदा हो रहे थें। फार्मो का सारा काम बिजली से हो रहा था। तथा पौदो को ठण्ड से बचाने